उम्मीदों का नाउम्मीद सत्र गैरसैण (भराडीसैण) विधान सभा सत्र!
(मनोज इष्टवाल)
जैसे कि पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि 7 दिसम्बर से 13 दिसम्बर तक चलने वाला यह सत्र मात्र दो दिन भी चल जाए तो गनीमत है! उस पर तभी मोहर लग गयी थी जब मुख्यमंत्री के अपर मुख्यसचिव ओम प्रकाश ने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए वहां जाने की जगह मसूरी घूमना ज्यादा पसंद किया! ऊपर से सत्र कवर करने गए पत्रकारों की घटी संख्या से भी सभी ने अनुमान लगा लिया था कि सत्र ज्यादा लम्बा नहीं चलने वाला!
यह सैर सपाटा सरकार के इगो के लिए था या जनता की मूलभूत समस्याओं के निराकरण के लिए? यह भी बड़ा प्रश्न है क्योंकि जो प्रदेश लगभग 40 हजार करोड़ रूपये का कर्ज में डूबा हो उसका शीतकालीन अनुपूरक बजट सत्र गैरसैण जैसे स्थान पर करना कहाँ न्यायोचित्त है यह बड़ा प्रश्न था! दो दिन में करोड़ों रूपये खर्च करने वाली सरकार के पास शायद एलआईयू की रिपोर्ट भी नहीं पहुंची थी कि हो न हो स्थानीय जनता के कोपभाजन का शिकार उन्हें बनना पड़े!
(सिराणा गाँववासियों के समर्थन में इन्द्रेश मैखुरी)
हुआ भी यही क्योंकि सिराणा गाँव के निवासियों ने इन्द्रेश मैखुरी राज्य कमेटी सदस्य भाकपा(माले) के नेतृत्व में विधान सभा कूच कर पहाड़ से पलायन रोकने के लिए प्रतिबद्ध सरकार के आगे वही प्रश्न फिर से ला खड़ा कर दिया कि आखिर वे पहाड़ से पलायन करें तो क्यों न करें! गैरसैण विकास खंड के अंतर्गत भराड़ीसैण में जहां विधानसभा बनी है,उसी पहाड़ी के निचले छोर पर सिराणा गाँव है.
इन्द्रेश मैखुरी का कहना है कि यह दीपक तले अंधेरे-वाले मुहावरे को चरितार्थ करता है क्योंकि इसके शीर्ष चोटी पर मंत्रियों, विधायकों, अफसरों के सालाना पिकनिक के लिए विधनसभा और विधायक निवास बने हैं.और उसके ठीक नीचे बसे गांव में सड़क तक नहीं है. गांव का पानी का स्रोत विधानसभा निर्माण के मलबे से नष्ट कर दिया गया है. जंगलीचट्टी से 4 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर पहुंचना होता है सिराणा. कोई बीमार हो जाये या कोई अन्य दिक्कत हो तो सड़क पर पहुंचना ही अपने आप में बड़ा काम बन जाता है.सड़क की खातिर बरसों पहले ग्रामीण जेल भी भुगत चुके हैं पर सड़क नहीं आयी;उत्तराखंड बनने के 17 वर्षों में भी नहीं आयी.
उन्होंने बताया कि सिराणा के युवा ग्राम प्रधान वीरेंद्र मेहरा ने सड़क और पानी के मामले में विधानसभा के सामने प्रदर्शन करनी की ठानी. मुझे भी उन्होंने कहा कि मैं उनके साथ प्रदर्शन में शामिल होऊं.विधानसभा सत्र के आज (7दिसम्बर को) पहले दिन हम निकले. जंगल और चढाई का रास्ता पार करके भराड़ीसैंण पहुंचे.युवा लड़के,लड़कियां, महिलाएं,उम्र दराज झुर्रीदार चेहरे वाले महिला-पुरुष तक खड़ी चढाई नाप कर सड़क के संघर्ष में पहुंचे.
(अपने जल, जंगल, जमीन व पेयजल स्रोत की मांग लिए सिराणा गांववासी)
अब ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जनहित में बात-बात पर पीआईएल लगाने वाले वे राष्ट्रीय एनजीओ गए कहाँ! क्या उन्हें नहीं दिखता कि जिस मलवे को डम्पिंग यार्ड में जमा करना होता है उस से न सिर्फ सिराणा गाँव का पेयजल स्रोत बंद हो गया है बल्कि उनके खेतों व प्राकृतिक संपदा को भी बेहद नुकसान पहुंचा है! ऐसे में अभी तक 1.67 अरब रूपये खर्च कर बने इस विधान सभा भवन के मलवे का डम्पिंग यार्ड पर खर्चा आया करोड़ों रुपया आखिर कहाँ गया यह भी प्रश्न उठता है!
ऊपर से जो भाजपा चुनाव से पहले इसी विधान सभा के मेजों पर खड़ा होकर गैरसैण को विधान सभा राजधानी घोषित करने का होहल्ला मचाकर चुनाव में बाजी जीत गयी आज वही जब सत्ता में है तब संसदीय कार्य मंत्री-प्रकाश पन्त कह रहे हैं कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का सरकार के पास कोई प्रस्ताव नहीं है. शायद भाजपा के संसदीय मंत्री किसी उहापोह में यह सब बोल गए वरना उन्हें पता होता कि यह प्रस्ताव उनके पास आना कहाँ से था? जबकि 1994 की कौशिक समिति से लेकर 2008 के दीक्षित आयोग तक तो जनता ने गैरसैंण के पक्ष की ही बात की थी.
इन्द्रेश मैखुरी प्रखर स्वर में इस पर अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि यह सब एक ड्रामा इन राजनीतिक दलों का है जो सैर सपाटे से ज्यादा कुछ नहीं! क्या प्रकाश पन्त संसदीय एवं आबकारी मंत्री को यह भी बताना चाहिए था कि जब शराब की दुकानें राष्ट्रीय राजमार्ग पर खुलवाने, उनकी सरकार उच्चतम न्यायालय में फैसला बदलवाने गयी तो वह प्रस्ताव किसका था? और किस तरह उनकी सरकार ने शराब की दुकान खुलवाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों को एक ही दिन में बदलकर राज्यीय मार्गों में तब्दील कर दिया!
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में गाँव के गाँव वीरान हो रहे हैं. स्वयं कृषि मंत्री कह रहे हैं कि 1100 गाँव पूरी तरह खाली हो चुके हैं.इस गति से जल्द ही पहाड़ के गाँव सिर्फ जंगली जानवरों के बसेरे ही रह जायेंगे.पलायन आयोग के झुनझुने से तो गाँव आबाद होने से रहे !
बहरहाल करोड़ों रूपये खर्च करने के बाद दो दिन चले इस विधानसभा सत्र में कुल 12 विधेयक पास हुए और एक सदन के पटल पर रखा गया । कुल प्राप्त प्रश्न 1090 प्राप्त हुए अल्प सूचित रुप से स्वीकार 18 उत्तर 4, तारांकित रुप से स्वीकार 160 उत्तरित 33, तारांकित रुप से स्वीकार 832 उत्तरित 193, विचाराधीन 40 और अस्वीकार 40 प्रश्न किए गए।