उन्नीसवीं सदी की एक मिशाल – टिहरी
—–उन्नीसवीं शताब्दी की एक मिशाल .
आर पी बडोनी की कलम से-
एक ऐतिहासिक नगरी जो १८५ बर्ष की अल्पायु में ही जल समाधिस्थ हो गई . सायद महान संत बेदांती स्वामी राम तीर्थ की परंपरा को याद दिलाने और कायम रखने की भावना के साथ जिन्होंने अपने जीवन केअंतिम प्रयाण के लिए इस पवित्र नगरी की भिलंगना नदी को जलसमाधि के लिए चुना . इस नगरी को ऐतिहासिक नगरी की केवल उपमा ही नहीं देरहे हैं बल्कि यह ऐतिहासिक नगरी थी जो कई अमूल्य और अनोखी यादें अपने में समेटे हुए हैं- १८१५ में आधा गढ़वाल पर अंग्रेजों का आधिपत्य हो जाने के बाद टेहरी नरेश को श्रीनगर छोड़ना पड़ा और भिलंगना भागीरथी के तट पर त्रिहरि (टेहरी ) में अपनी राजधानी की स्थापना की . उसके बाद यह छोटा सा गांव दिनोदिन प्रगति करता रहा और महाराजा कीर्तिशाह केकार्यकाल तक यह एक छोटे सुन्दर नगरनुमा कसबे का रूप लेचुका था . जब ऋषिकेश देहरादून में घरों में रात्रि प्रकाश के लिए लालटेन आदि का प्रयोग किया जाता था तो टेहरी की सड़कों पर बिजली के बल्ब टिमटिमाते थे .
- भैंतौगी गाड़ पर बना पनबिजली घर राजमहल और टेहरी बाजार को बिजली की आपूर्ति करता था . नलों द्वारा पेय जलापूर्ति होती थी और जनता के लिए पुराने दरवार , चौरयों में (बाद में बस अड्डा ) बाजार में सुमन चौक घंटाघर कोर्ट कंपाउंड और भादू की मगरी आदि स्थानों पर सार्बजनिक उपयोग के लिए पानी के नल लगाए गए थे . तत्कालीन समय में टेहरी का घंटाघर प्रताप इण्टर कॉलेज हुजूर कोर्टऔर लाट कोठी आदि भवन बास्तुकला की एक मिशाल थे और सायद भारत ही नहीं एसिआ में भी अनूठी कलाकृतियों में थे . कई ऐतिहासिक क्रांतिकारी घटनाओं से ओतप्रोत यह शहर ————-