उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के अष्टम दीक्षांत समारोह में बोली राज्यपाल-‘सेंटर फाॅर एक्सीलेंस’ बनाने की दिशा में कार्य किए जाने की जरूरत!

राजभवन हरिद्वार/देहरादून 18 फरवरी, 2020 (हि. डिस्कवर)

राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने मंगलवार को हरिद्वार में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के अष्टम दीक्षांत समारोह में प्रतिभाग किया।  समारोह को सम्बोधित करते हुये राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत में निहित ज्ञान को आधुनिक ज्ञान के साथ जोड़कर नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर रहा है। संस्कृत को आमजन की भाषा बनाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ना चाहिये। सोशल मीडिया के युग में आज सम्पर्क एवं संचार के लिए अनेक संसाधन उपलब्ध हैं। संस्कृत के प्रचार-प्रसार आदि में इनका भरपूर उपयोग हमें करना चाहिए। संस्कृत विश्वविद्यालय को अपनी उपाधियों को इस प्रकार निर्धारित करना चाहिए कि एक ओर वे परंपरा की वाहक हों और दूसरी ओर उनका संबन्ध आधुनिक दुनिया के साथ हो।          

राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संस्कृति विश्वविद्यालय को प्राच्य अध्ययन के क्षेत्र में ‘सेंटर फाॅर एक्सीलेंस’ बनाने की दिशा में कार्य किए जाने की जरूरत है। ऐसी उपाधियां और अकादमिक कार्यक्रम भी आरंभ किए जाने चाहिए जिनसे विदेशी छात्र-छात्राओं को आकर्षित किया जा सके। राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों को रोजगार उन्मुख बनाना अत्यंत आवश्यक है। संस्कृत से जुड़े क्षेत्रों में रोजगार की अपार सम्भावनायें हैं। योग, आयुर्वेद, ज्योतिष, खगोल विज्ञान जैसे ज्ञान मूल रूप से संस्कृत में ही उपलब्ध हैं। इनका अध्ययन करने के लिये संस्कृत शिक्षा को सशक्त होना होगा। संस्कृत भाषा से रोजगार और आर्थिक समृद्धि को जोड़कर ही इस भाषा और इसके स्नातकों का समग्र कल्याण संभव है।        

उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव, डाॅ. इन्दु कुमार पाण्डेय ने आधार भाषण देते हुये कहा कि प्राचीन विद्याओं एवं संस्कृत के संरक्षण हेतु यह विश्वविद्यालय बना है। संस्कृत के किसी अध्येता के समक्ष आज संस्कृत की उन्नति तथा उसे वैज्ञानिक ढंग से ढालने की जो समस्या उपस्थित है मेरी दृष्टि से वह अधिक महत्वपूर्ण है। संस्कृत की सार्वभौमिक प्रतिष्ठा कैसी हो और संस्कृत के विद्वानों के विचारों का एक साथ बैठकर आदान-प्रदान कैसे हो इसके लिए 1914 में अखिल भारतीय संस्कृत सम्मेलन का जन्म हुआ। संस्कृत के संरक्षण एवं संवर्धन में यह विश्वविद्यालय विशिष्ट कार्य कर रहा है। मुझे विश्वास है कि विश्वविद्यालय इस दिशा में बहुत आगे बढ़ेगा।   

समारोह में स्वागत भाषण देते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि यह वर्ष हमारे लिए उपलब्धियों भरा है। इस वर्ष संस्कृत के विकास के लिए अनेक कार्य हुए हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा नैक का प्रमाण पत्र प्रदान किया जाना तथा 12बी. का निरीक्षण  विश्वविद्यालय की विशेष उपलब्धि है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग MOOC के अन्तर्गत चार आॅनलाइन पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय द्वारा संचालित है। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि क्रीडा के क्षेत्र में हमारे विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रायें देश विदेश में ख्याति अर्जित कर रहें हैं। इस अवसर पर उन्होंने उपाधि प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को शपथ दिलाकर दीक्षित किया।   

विशिष्ट अतिथि संस्कृत शिक्षा सचिव, विनोद रतूड़ी ने कहा कि संस्कृत के विषय में जितना भी कुछ कहा जाय वह सूर्य के सामने दीपक की तरह ही है। यह भाषा आदिकाल से ही ज्ञान का अद्भुत संगम रही है। ज्ञान की इस स्वास्वत परम्परा के कारण ही भारत विश्वगुरु के रूप में पूजा जाता रहा है। श्री रतूड़ी ने सभी स्नातकों को बधाई दी।संस्कृत के 02 विशिष्ट विद्वानों को विद्यावाचस्पति (डी.लिट्.) की उपाधि राज्यपाल द्वारा प्रदान की गयी। प्रो. जगन्नाथ जोशी एवं प्रो. जगदीश प्रसाद सेमवाल को यह उपाधि उनके द्वारा संस्कृत के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए प्रदान की गयी।   

इस अवसर राज्यपाल ने 10 शोधार्थियों को विद्यावारिधि   (पी.एच.डी.) की उपाधि प्रदान की जिनमें- दीपिका, विशाखा, कुसुम शर्मा, बबीता लसियाल, राकेश सिंह, भूपेन्द्र सिंह, जनार्दन प्रसाद कैरवान, शक्ति प्रसाद उनियाल, सन्दीप रतूड़ी, लखपति देवी के नाम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सत्र 2017-18 एवं 2018-19 के 32 छात्र-छात्राआंें को स्वर्ण पदक प्रदान किये। दीक्षान्त समारोह में कुल 5336 उपाधियाँ प्रदान की गईं।  दीक्षान्त समारोह में राज्यपाल के सचिव रमेश कुमार सुधांशु विश्वविद्यालय के समस्त प्राध्यापकगण, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राओं तथा सम्बद्ध महाविद्यालयों/संस्थानों के प्राचार्यों, अध्यापको एवं छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। 

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