उत्तराखण्ड में गंगा यमुना व हिमालय बचाना है तो स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जाय।

नई दिल्ली 8 अप्रैल 2018 (हि. डिस्कवर)
उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी (उत्तराखंड) की एक सामाजिक संस्था सामाजिक एवं पर्यावरणीय कल्याण समिति (सेवा) ने लोकसभा की याचिका समिति में एक याचिका दायर कर कहा था कि गंगा-यमुना सहित कई नदियों के उद्गम उत्तराखंड के हिमालय को बचाना है तो इसके लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

लगातार भूस्खलन की जद में आ रहे टिहरी बांध सहित अन्य बांधों के जल संग्रहण क्षेत्रों में वृहद वृक्षारोपण किया जाए। वन क्षेत्र में लगातार लगने वाली भीषण आग से बचाव किया जाए। पर यह तभी संभव होगा जब इसके लिए स्थानीय निवासियों का एक हिमालय संरक्षण बल गठित किया जाता है। यह बल आग से जंगलों की सुरक्षा वृक्षारोपण तथा आपदा प्रबंधन में प्रशासन के साथ खड़ा होगा।
सांसद भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता वाली 14 सदस्यीय सांसदों की समिति ने इस मामले में याचिका कर्ता सहित सरकार व स्थानीय लोगों के विचार सुनने के बाद अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश की जिसमें कहा गया कि हिमालय के संरक्षण व आपदा प्रबंधन जैसे कार्यो के लिए स्थानीय लोगों की भागीदारी तर्क संगत एवं लाभकारी सिद्ध हो सकती है।

संस्था के संरक्षक विजेन्द्र रावत ने संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि यदि सरकार स्थानीय युवकों को सिर्फ पांच-छः हजार का मासिक मानदेय भी देता है तो वे इसमें करोड़ों की वन सम्पदा को बचा सकता है।
यदि सरकार पांच हजार रूपये मानदेय पर 30 हजार युवकों की भर्ती करती है तो इस पर 180 करोड़ रू0 सालान खर्च आयेगा। यह बल वृक्षारोपण उनकी सुरक्षा, आग से जंगलों की सुरक्षा, बांध क्षेत्रों में वृक्षा रोपण, चार द्याम की आलवेदर रोड़ के दोनों ओर बांज बुरांस व देवदार जैसे हिमालयी वृक्षों का रोपण कर दस साल में यह सड़कें दुनिया की सबसे मनोरम सड़के बन सकती हैं। पर यदि सड़क के निर्माण के लिए पेड़ों के कटान के जगह
यदि तुरन्त वृ़क्षा रोपण नहीं किया गया तो कच्चे हिमालय में होने वाले भूस्खलन व भूकम्प इन विशाल सड़कों के लिए एक आपदा के रूप में आ सकते है। अब तक नियमित बजट के अलावा हिमालय की सुरक्षा के लिए आये कैम्पा व आजीविका का 1200 करोड़ रू0 का पता ही नहीं चला।
इस बल के गठन के बाद यदि यह सिर्फ जंगलों में लगने वाली आग का 60 प्र0श0 भी बचाव करेगा तो इससे मिलने वाला कार्बन क्रेडिट इस बल के मेहनताने से ज्यादा होगा और इससे जो वनस्पति व पेड़ पौधे बचेंगे उनही कीमत हजारों करोड़ में आंकी जा सकती है।
संस्था का मानना है कि ‘नमामी गंगे’ का एक छोटा सा अंश इस बल को दिया जा सकता है जिससे यह हिमालय के उन जल श्रोतों का संरक्षण करेगा, जहां का निर्मल जल गंगा को बनाता है। बल के द्वारा हर नदी नाले के दोनों ओर वृक्षा रोपण किया जाएगा।
संस्था का मानना है कि हिमालय के संरक्षण में इतना रोजगार है, कि यहां का हर व्यक्ति हिमालय दूत बनकर रोजगार पा सकता है।
साथ ही लोग अपने गांव व घर में रहकर बागवानी, जड़ी बूटी उत्पादन जैसे लाभकारी काम भी करेंगे। जिससे पलायन भी रूकेगा। भारत की पांच बड़ी नदियां गंगा यमुना, सिन्धु, सतलुज व ब्रहमपुत्र है जिनमें तीन तिब्बत (चीन) व सिर्फ गंगा व यमुना का उद्गम ही हमारे देश से होता है, इसलिए उनके संरक्षण की जिम्मेदारी यह बल आसानी से उठा सकता है।
संस्था का कहना है कि यदि सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले भेड़ पालकों को यही मानदेय देकर उन्हें सीमान्त प्रहरी घोषित किया जाए तो वे जहां चीन जैसे देशों की घुसपैठ, हिमालयी क्षेत्रों में कीमती जड़ी बूटी की तस्करी सहित आपदा प्रबंधन में भी सहयोग करेंगे। इससे उनकी दूसरी पीढ़ी भेड़पालन के इस कठिन कार्यों में जुटी रहेगी और सीमान्त क्षेत्र भी आवाद रहेंगे।
उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र केदारनाथ में दुनिया की अपने किस्म की भीषणतम आपदा आई थी। इसलिए हिमालय में आपदा प्रबंधन के साथ-साथ ऐसे उपाय किए जाएं जिससे आपदा कम से कम आये। इसके लिए स्थानीय लोगों की हिमालय संरक्षण बल गठन मील का पत्थर साबित होगा।
अतः हमारा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से निवेदन है कि बल की नीव रखकर, दुनिया के सबसे बड़े आक्सिजन व वाटर टैंक को बचाने में अहं भूमिका अदा करें। बल पर खर्च होने वाला घन इसके लाभ के सामने एक तिनकाभर भी नहीं है।
 

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