उत्तराखण्ड "मी ठू".. प्रकरण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के लिए बना गर्म दूध। आखिर कब तक कोई वकालत कर इन लँगोट के कच्चे लोगों की।

उत्तराखण्ड “मी ठू”.. प्रकरण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के लिए बना गर्म दूध। आखिर कब तक कोई वकालत कर इन लँगोट के कच्चे लोगों की।
(मनोज इष्टवाल)
*संजय कुमार निबटे अब संजय गुप्ता जी कैसे चक्कर में आये।
संघ जिसके नियमों और अनुशासन में यकीनन ब्रह्मचर्य एक ऐसी विधा होती है जिसे वश में रखकर कामेन्द्रियों को बशीभूत कर ज्ञानेंद्रियों को सजग कर कार्ययोजना तैयार की जाती है। इसमें भी कोई शक नहीं कि राज्य और केंद्र में भाजपा को एकछत्र विजयी भव: का आशीर्वाद भी इन्हीं संघी कार्यकर्ताओं के बर्षों बहाए पसीने की खुशबू का हिस्सा है। लेकिन उच्च पदों पर संघ संगठन में आसीन कुछ पदाधिकारियों को जाने कब राजनीति की दूषित देहरी की विषकन्याओं ने हर लिया जिसके चलते उनकी कामेन्द्रियों की कामुकता ने पूरे संघ परिवार का मान मर्दन करने में कोर कसर नहीं छोड़ी।

अब उत्तराखण्ड में संघ संगठन व सरकार को हाँकने वाले संजय कुमार की ही बात ले लीजिए जब भी जिस पत्रकार ने भी इनके कारनामों का पर्दाफाश किया इन महाशय ने उसे कटघरे में खड़ा कर दिया। अब वही संघ परिवार इनके कारनामों की सजा भुगत रहा है। सूत्रों की मानें तो इस मामले में प्रदेश संगठन दो फाड़ हो गया है। जिस पक्ष ने ऐसे कुछ लोगों की लिस्ट बनाकर संघ प्रमुख मोहन भागवत को भेजने की बात कर नाराजगी जताई है वही इस दूसरे पक्ष की आंख की किरकिरी बन गया है और प्रचार कर रहा है कि पद पाने के लिए यह पक्ष बेवजह संजय जैसे पदाधिकारियों की छवि खराब कर रहा है।
उधर सुनने में तो यह भी आ रहा है कि संघ के उन दूषित लोगों के बचाव के लिए एक व्यक्ति आजकल देहरादून में भाजपा कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री तक के सारे सोर्स देखकर लूपहोल्स डस्टबिन के हवाले कर रहा है लेकिन वह व्यक्ति शायद यह भूल गया है कि धुर्र संघी मुख्यमंत्री उन सब खामियों से भलीभांति परिचित हैं जो ऐसे संघियों की कारगुजारी का हिस्सा बने हैं। इसका प्रमाण यह है कि संगठन में दिल्ली नागपुर की पैठ वाले संजय पर कार्यवाही करते समय एक बार के लिए भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नहीं सोचा कि इस से उनकी कुर्सी को भी खतरा हो सकता है।
फिलहाल संघ परिवार की यह रार अंदरखाने ही नहीं रह गयी है बल्कि छनकर बाहर भी आ गयी है क्योंकि संघ की आचारसंहिता का अक्षरत: पालन करने वाले संघी इस बात से बेहद दुखी हैं कि उनकी पूरी उम्र की कमाई इज्जत को संजय जैसे कुछ लोगों ने पलीता लगा दिया है। मुझे नहीं लगता कि संघ परिवार का एक और बड़ा पदाधिकारी ज्यादा दिन तक इस ग़लतफहमी में हो कि वह साफ बच निकला है क्योंकि उत्तराखंड का हर राजनीतिज्ञ व पत्रकार उसके कारनामों से भी परिचित है और यह भी तय है कि संजय को संगठन से निकाले जाने के बाद उसकी नींद हराम तो होगी ही कि कहीं संजय गिरफ्तार किए गए तो छींटे उसके दामन तक भी आ पहुंचेंगे। भले ही संगठन ने संजय से इस्तीफा लिया है लेकिन उसकी पैरवी में अंदरखाने कुछ राजनेता व संघी जरूर लगे हैं ताकि संजय उनके गले की फांस न बने। 
वैसे संजय कुमार के इस्तीफे के बाद संजय गुप्ता जी 5 लाख लेते हुए दिखे। क्या संजय जैसे व्यक्तित्वो की राशि में राहु शनि बैठे हैं। क्यों सं- संघ, सं-जय में एक सी बिंदी लगी है। ये संघ का नाम धूमिल करती नजर आ रही हैं।बहरहाल यह सब संघ प्रमुख के लिए गर्म दूध से कम नहीं है क्योंकि निगलते हैं तो गला जलता हैं थूकते हैं तो दूध है।

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