उत्तराखंड में "हिमालयन किनोवा" उत्पादन करने वाला क्षेत्र बना डाडामंडल का मल्ला बनास! हाईफीड करवा रहा है नया प्रयोग!
उत्तराखंड में “हिमालयन किनोवा” उत्पादन करने वाला क्षेत्र बना डाडामंडल का मल्ला बनास! हाईफीड करवा रहा है नया प्रयोग!
(मनोज इष्टवाल)
एक ओर सम्पूर्ण उत्तराखंड पलायन की जद में है ! उत्तराखंड के सबसे अधिक पलायन की अगर बात होती है तब पहले स्थान पर जनपद पौड़ी का नाम आता है! इसी पौड़ी के डाडामंडल क्षेत्र के ग्रामीणों ने पलायन को धत्ता बताने के लिए अपने खेतों में नयी तरह की कृषि प्रणाली शुरू कर एक प्रयोग करना शुरू कर दिया है! ओएनजीसी के सहयोग से पूर्व में ग्राम सभा मल्ला बनास व तल्ला बनास सहित किमसार में प्रयोग के तौर पर नगदी फसल के रूप में सब्जी उत्पादन प्रारम्भ किया गया जिसमें मल्ला बनास के ग्रामीण अपने को साबित करने में कामयाब हुए और उन्होंने ब्रोकली, लाल पीली शिमला मिर्च, टमाटर, जुगनी सहित कई सब्जियों का उत्पादन कर बता दिया कि देख रेख हो तो जंगली जानवर कुछ अहित नहीं कर सकते! हाईफीड अब एक नयी फसल के रूप में यहाँ किनोवा ला रहा है जिसे न चिड़िया नुक्सान पहुंचा सकती हैं न जानवर!

विगत 15अगस्त को हाईफीड ने ग्राम प्रधान मल्ला बनास के एक खेत में ग्रामीण महिलाओं व पुरुषों की भागीदारी से किनोवा के बीजों का रोपण किया जिसके परिणाम के तौर पर उसके पौधे अंकुरित हो आये हैं भले ही अतिवृष्टि से उनको नुकसां हुआ है लेकिन ग्रामीण खुश हैं कि उनका यह प्रयोग सफल हुआ है! हाईफीड के निदेशक उदित घिल्डियाल बताते हैं कि किनोवा विश्व भर में बिकने वाला एक मात्र ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसका दाना पहाड़ी भू-भागों में बोया जाने वाला झंगोरा से आकार में थोड़ा बड़ा होता है और इसका पौधा चोलाई के आकार का होता है! इसकी फसल तिमासी होती है व साल में आप अपने खेतों में इसकी तीन फसलें उगा सकते हैं! उन्होंने बताया कि इसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमत है! हाई फीड ग्रामीणों से किनोवा 50 रूपये के भाव से खरीदकर उसे बाजार में “हिमालयन किनोवा” के नाम से उतारेगा क्योंकि गुजरात से आये कृषि वैज्ञानिक मुकेश दवे ने भूमि की मृदा जांच के बाद आश्वस्त किया है कि यहाँ बेहतरीन किस्म का किनोवा उत्पादन हो सकता है!

उदित घिल्डियाल बताते हैं कि किनोवा बथुआ प्रजाति का सदस्य है जिसका वनस्पति नाम चिनोपोडियम किनोवा है ग्रामीण क्षेत्र में शब्द उच्चारण के कारण इसे किनोवा, केनवा आदि कई नाम से बताया जाता है! इसकी खेती मुख्य रूप से दक्षिण अमेरिकी देशों में की जाती है! जिसमे इंग्लैंड, कनाडा, आस्टेलिया, चाइना ,बोलिविया , पेरू इक्वाडोर आदि प्रमुख हैं! किनोवा की खेती इस फसल को रबी के मौसम में उगाया जाता है ! इसका उपयोग गेहू, चावल, सूजी की तरह खाने में किया जाता है! यह गेंहूँ के आटे की तरह पिसाकर गेहूं के मापदंड में मिलाकर खाने में बेहतरीन स्वास्थ्यबर्धक है!

गुजरात से आये कृषि वैज्ञानिक मुकेश दवे बताते हैं कि 100 किनोवा में 14 ग्राम प्रोटीन ,7 ग्राम डायटरी फाइबर 197 मिली ग्राम मैग्नेशियम 563 मिली ग्राम पोटेशियम 5 मिली ग्राम विटामिन बी पाया जाता है। इसका प्रतिदिन सेवन करने पर हार्ट अटेक,केंसर,और सास सम्बन्धित बीमारियों में लाभ मिलता है। इसके पत्तों की भी चोलाई के पत्तों की तरह भाजी बनाकर खाई जा सकती है! जो आपके शरीर में खून की मात्रा में हो रही कमी को ख़त्म करता है व रक्तविकारों से छुटकारा दिलाता है!
मुकेश दवे के अनुसार किनोवा की फसल प्रति बीघा अनुमानत: पांच से सात कुंतल होती है जिसके पौधों की उंचाई लगभग 6-7 फिट के आस-पास होती है व यह फसल मात्र तीन माह में तैयार हो जाती है. इसमें गुड़ाई निराई की भी ज्यादा समस्या नहीं है ! एक बार गुड़ाई या निराई कर देने से आसानी से काम चल जाता है! साथ ही खेत को 2 और 3 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए अंतिम जुताई से पहले खेत में 5,6 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद मिला देना चाहिए इसकी फसल के लिए अगर आप आलू गागली या अदरक की तरह मेंड बना लें तो ज्यादा अच्छा है!

छोटी बिलायत के नाम से मशहूर डाडामंडल क्षेत्र के मल्ला बनास गांव उत्तराखंड का पहला ऐसा गाँव बनने जा रहा है जहाँ किनोवा का उत्पादन होगा ! ग्राम प्रधान श्रीमती बिमला देवी बिष्ट बताती हैं कि अब ग्रामीण एक कृषि समिति या कम्पनी बनाकर आगामी समय में यहाँ ऐसी रूप रेखा बनायेंगे कि नियमित हो रहे पहाड़ से पलायन पर अंकुश लगेगा! उन्होंने हाई फीड का शुक्रिया करते हुए कहा कि हाई फीड उस दौर में यहाँ आई जब ग्रामीण घरों में ताले लगाकर शहरों की तरफ रुख करना शुरू कर दिए थे ! जब से उनके गाँव में सब्जी उत्पादन की बातें लोगों के कानों तक पहुंची तब से शहरों में बसे लोगों का गाँव आना जाना शुरू हो गया है और उसका सुखद परिणाम यह हो रहा है कि गॉंव फिर से आबाद होने लगे हैं! आपको बता दें कि भारत बर्ष में किनोवा उत्पादन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात प्रमुख हैं!