उखीमठ में अष्ठ भैरव की बोलती मूर्तियां बनी हैं बड़ा रहस्य। विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती…!

उखीमठ/केदारघाटी (हि. डिस्कवर)
देवभूमि में आये दिन ऐसी कई रहस्यमयी घटनाओं के घटित होने पर भले ही यहां के वासियों के लिए यह कोई आश्चर्य या हैरत की बात न हो लेकिन यह सच है कि कई घटनाएं बेहद अकथनीय व अकल्पनीय लगती हैं। ऐसी ही घटना रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ में चर्चाओं में है जहां कालीमठ में काली व अष्टभैरव की मूर्तियां बात करती हुई सुनाई दे रही हैं। यह मानवीय विज्ञान है या वैज्ञानिकों को चुनौती यह कहना यकीनन बहुत मुश्किल है।
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इसी घाटी के दीपक बेंजवाल बताते हैं कि  केदारघाटी मे 21 वी सदी का अब तक यह सबसे बड़ा रहस्य सामने आया है। यहां ऊखीमठ के नजदीक अष्टभैरव मंदिर की 411 साल पूरानी मूर्तियो आलौकिक ताकत और मूर्तियों का वार्तालाप अचरच में डाल रहा है।

वहीं अष्टभैरव मंदिर के पुजारी दीपक कुँवर अष्टभैरव की इस मूर्ति को दुनिया की एकमात्र जागृत मूर्ति होने का दावा करते हैं। उनका कहना है कि मंदिर की ये  देवता की मूर्ति मानवों के समान वार्तालाप करती है। देवता के निशानो में समाहित “वज्रशक्ति” किसी बाहरी व्यक्ति के छूने पर करंट लगाती है।
मूर्तियों के इतिहास के संबध में उनका कहना है कि ऊखीमठ पर मौहम्द गजनवी के गुलाम मलिक अयाज द्वारा हमला कर प्राचीन अष्टभैरव मंदिर को नष्ट कर मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया गया था। लेकिन जागृत मूर्ति अट्टहास करते हुऐ उसकी मूर्खता पर हंसी और मूर्ति ने अपनी वज्रशक्ति से उसे दूर फैंक दिया था।  ऐसे  में इस आक्रांता मलिक अयाज ने भयाक्रांत होकर ऊखीमठ से भागना उचित समझा था। मन्दिर के  नष्ट होने बाद उसे अपवित्र माना गया व अष्टभैरव की मूर्ति को 411 वर्ष की समाधि दिए जाने की घोषणा की गयी।
पंडित दीपक कुंवर बताते हैं कि पुजारियों द्वारा देवता की समस्त मूर्तियों, निशानों को लकड़ी के बड़े संदूक में बन्द करके अभिमंत्रित कर समाधिस्त कर दिया गया था। विगत वर्ष 2016 मे समाधि के 411 वर्ष पूर्ण होने पर पुजारी  दीपक द्वारा इन मूर्तियोों को बाहर निकाला गया। देवता की आज्ञानुसार वे इसे लघु देवरा ( यात्रा ) पर भी ले गये थे । उन्होंंने बताया  वे सन 2018 में इन मूर्तियों को  52 जूला गावों की विशाल देवरा यात्रा पर ले जा रहे हैं ताकि इन गांवों के लोग अष्टभैरव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
वहीं दीपक बेंजवाल का कहना है कि 411 साल पुराने इस रहस्यमयी समाधिस्त खजानें  में  कई दुर्लभ पाण्डुलिपियां भी मिली हैं जिनमें गढवाल का अब तक का प्राचीन छिपा हुआ इतिहास भी शामिल है। जो शोधार्थियो के लिऐ बड़ी खोज मानी जा रही है। इस रहस्यमयी खजाने की सबसे दुर्लभ वस्तु अष्टभैरव, मा काली की मूर्तिया है जो आज भी बोलती है। निशान छूते ही करंट का झटका लगता है। अब तक कई प्रत्यक्षदर्शी इस चमत्कार को देख चुके है।
भले ही धर्म, संस्कृति, अध्यात्म, पुरातत्व, विज्ञान, मनोविज्ञान, परालौकिक विज्ञान, अर्थशाष्त्र और इतिहास के चहेतों के लिऐ यह बड़ा रहस्य हो लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि क्या सचमुच मोहम्मद गजनवी जैसा आक्रांता इस उच्च हिमालयी भू भाग तक पहुंच पाया होगा? यकीनन इसके लिए इतिहास के पन्ने खंखालने की आवश्यकता है। देखा जाय तो उखीमठ का उल्लेख द्वापर युग में भी वर्णित हैं क्योंकि यहीं बाणासुर की पुत्री उषा  और कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ हुआ था । उखीमठ ही वह स्थान है जहां बाबा केदारनाथ का 6 माह शीतकाल प्रवास है।
बहरहाल युगों युगों से प्रसिद्ध उखीमठ का कविल्ठा (कालीमठ) कालिदास और विधोतमा की के प्रसंग से भी जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र पूर्वकाल से ही योग ध्यान साधना व शिक्षा का माना हुआ केंद्र रहा है। वर्तमान परिवेश में यह घटना वास्तव में चमत्कारिक होने के साथ रोमांच व धार्मिक आस्था की बेजोड़ मिशाल बना हुआ है जिस पर शोध किया जाना बहुत जरूरी है।

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