ईमानदार अधिकारियों की जगह नहीं है बागेश्वर में.

ईमानदार अधिकारियों की जगह नहीं है बागेश्वर में.
केशव भट्ट की कलम से ….
उत्तराखंड के बागेश्वर के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल अपने सरल व्यवहार की वजह से हर किसी के दिल में छाए हुए हैं. मैंने खुद भी देखा-महसूस किया कि इस तरह के सहज-सरल अधिकारी हों तो फिर जनता की शिकायतें तो खुद-ब-खुद हल होते चले जाएंगी. जहां तक मैं समझा इन्हें नेताओं व घाघ अफसरानों की तरह जिंदगी जीना ठीक नहीं लगता. अब ये दिगर बात है कि भविष्य में आतताईयों से परेशां हो इनका आचरण क्या-कुछ हो जाऐगा.
डीएम साहब की कहानी बहुत लंबी है….. फिर कभी विस्तार से इनके हुनर को समझ सका तो आपके सामने लाउंगा….
बहरहाल्! थोड़ा सा सुना कि ये सरकारी स्कूल से ही पढ़े-लिखे हैं और सादगीपूर्ण बचपन जीते हुए वो उसी राह पर हैं. अभी इस बीच गांवों के भ्रमण में हैं और बिना लाव-लश्कर के आराम से गांव में ही रात बिताकर जनता की समस्याएं जान-समझ रहे हैं.
इस बीच विधानसभा चुनावों में बागेश्वर जिले के दोनों विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी जीत गए. चुनावों में इस बार प्रशासन को निस्पक्ष चुनाव के लिए सख्ती बरतने के लिए चुनाव आयोग का प्रेशर भी काफी रहा. कई प्रत्याशियों को इस सख्ताई की वजह से दो-चार भी होना पड़ा, और वो वस्तुस्थिति को समझने के बजाय प्रशासन को बाद में सबक सीखाने की मंशा पाल बैठे.


अब सुनने में आ रहा है कि डीएम साहब की ईमानदार कार्यप्रणाली वर्तमान विधायक कहें या उनके चांण-बांणों को रास नहीं आ रही है और चुनाव में प्रशासन से नाराज कपकोट क्षेत्र के विधायक के कारिंदे डीएम साहब के स्थानांनतरण के लिए उतावले होने लगे हैं.
अगर ऐसा होता है तो ये इस जिले का दुर्भाग्य होगा..
लेकिन ये मुश्किल ही होगा….. ज्यादातर तो खड़िया के दलदल में धंसे हुए हैं….
और डीएम साहब उनके खड़िया के गलत काम को सही भी नहीं कर रहे हैं बल…. जबकि ये तो वर्षों से होते आया है…..
और डीएम साहब की ईमानदारी से काम करने के तरीके से इनकी बादशाहत में खलल भी पैदा हो रही है….
अब क्या कहें……
वैसे भी इस जिले का ये दुर्भाग्य ही रहा है हर हमेशा से ही कि जितने भी अधिकारियों ने जनता के लिए काम करने की कोशिश की वो राजनीति का शिकार हो गए….
दुआ करो कि विधायकों के चांण-बांणों को थोड़ी सी सद्बुधी आ जाए….

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