इसोटी का देवधारा, जहाँ शुभकार्यों के लिए गुफ़ा के द्वार में मौजूद मिलते थे ताम्र पात्र (भांड)…!
इसोटी का देवधारा, जहाँ शुभकार्यों के लिए गुफ़ा के द्वार में मौजूद मिलते थे ताम्र पात्र (भांड)…!
(मनोज इष्टवाल)
MANOJ ISTWAL·SUNDAY, MARCH 13, 2016 (स्टोरी टेलर इन ट्रेवलाग)
*इसोटी का देवधारा, जहाँ शुभकार्यों के लिए गुफ़ा के द्वार में मौजूद मिलते थे ताम्र पात्र (भांड), देवपरियों के बर्तनों में पकता था लोधी रिखोला के गॉव बयेली नगधार में खाना…!!
अविश्वसनीय लेकिन अकाट्य सत्य..! आज भी चर्चाओं में आता है इनका उदाहरण. बर्षों बाद जब अपने पूर्वजों के गॉव इसोटी में अपने भांजे व बहु (नवविवाहित जोड़े) के साथ पनघट पूजा के लिए गया और कटवा पत्थर के अस्त-ब्यस्त पनघट को देखा तो देखता ही रह गया. चन्द बर्षों में कितना परिवर्तन हुआ वह देखकर हैरत हुई. पहला परिवर्तन गॉव में सड़क का आना दूसरा परिवर्तन पानी वाले रास्ते में आया जो बेहद सुखद लगा, क्योंकि इस रास्ते पर चलने के लिए 25-30 बर्ष पूर्व पतलून ऊपर करके चलना पड़ता था क्योंकि यहाँ मानव मल से पूरा रास्ता पटा रहता था शायद तब के छोटे बच्चे इसी रास्ते में सुबह सबेरे अपना शौचनिवृत्ति का जरिया ढूंढते थे. इस रास्ते जाना इसलिए भी जरुरी था क्योंकि यही रास्ता सीधे घळआ गॉव स्थित बिनसर को जाता था और यही मुख्यमार्ग भी था. लेकिन शिक्षित समाज के साथ घर-घर शौच बनने से यह परिवर्तन सुखद लगा वहीँ पनघट की दुर्दशा देख दुःख हुआ. पनघट के ऊपर पौराणिक बिष्णु प्रतिमा निंद्रा रूप की जगह खडी रखी दिखी जो अटपटी लगी सोचा था जाते समय बिष्णु प्रतिमा को उसी रूप में रख आऊंगा जिसमें बिष्णु जल में विराजमान निंद्रारूप में वास करते हैं, ऐसे ही बिष्णु पनघट मैंने कई गॉव में देखे जिनमें असवालस्यूं के नैल गॉव का पनघट (धनक भागवत ९.२३.२३(दुर्मद – पुत्र, कृतवीर्य आदि ४ पुत्रों के पिता, यदु वंश), विष्णु ३.१.१८(तामस मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक), …… धारा नारद १.६६.९८(विमल विष्णु की शक्ति धारा का उल्लेख), पद्म ६.१४३ (पाण्डु पुत्रों द्वारा स्थापित सप्त धारा तीर्थ का …… नैल ब्रह्माण्ड १.२.३३.४(८६ श्रुतर्षियों में से एक, बह्-वृच), व मनियारस्यूं के ढाडूखाल के पास स्थित एक गॉव कलैथ है।
(इसोटी गांव का पनघट)
इसोटी के इस पनघट से एक कई किमी. लम्बी सुरंग थी जिसमें पूर्व में कई बुजुर्ग मशालें जलाकर आधा पौन किमी अन्दर तक जाया करते थे लेकिन अब यह सुरंग क्षतिग्रस्त हो गयी. पानी की दुर्दशा की बात पूछने के लिए जब मैं गॉव की चाची ताई वगैरह के पास गया तो उन्होंने बताया कि पूर्व में जब गॉव में कोई शुभकार्य होता था और पकवान बनाने के लिए बर्तनों की जरुरत पड़ती थी तब भूमि के भूम्याळ देवता भैरव के नाम का पैणा (हिस्सा) पकोड़ी/अरसी के रूप में पनघट की सुरंग के द्वार पर रखा जाता था तब अगली सुबह वहां स्वयं जो बर्तन आप मांगते थे वह मौजूद मिलते थे। यह बात उनके ससुर या सास लोग यानी हमारे दादा लोगों के दादा लोगों के समय की है, अर्थात एक सदी पूर्व की।
(इसोटी गांव पनघट की बिष्णु मूर्ति)
मैंने जिज्ञासावश जानना चाहा कि फिर अब क्यों नहीं? तब एक दादी बोली- बेटा, हमारे पुराने बोलते थे कि भैरों आवाज देकर चेता देता था कि किसकी गाय कहाँ जंगल में है, किसके खेतों में जंगली जानवर घुस गए हैं या किसके यहाँ चोर आ रखे हैं!लेकिन गोर्ख्याणी राज्य में जब गोरखा आक्रमण हुआ था तब उन्होंने मन्दिर व पनघट की मूर्तियाँ खंडित कर दी. वहीँ दूसरी बात यह भी उभरकर सामने आई कि एक बार भैरों ने आवाज देकर गॉव के पधान और गॉव वालों को बताया कि दूसरे गॉव के लोग उनके खेत के धान के कुणका/खाळआ (धान काटकर एक जगह इकठ्ठा करके रखना फिर उसकी मंड़ाई खेत में ही होती थी) की मंड़ाई कर रहे हैं। तब गॉव वालों ने उन्हें पकड़ लिया और दंडित किया उसके पश्चात् उन्ही लोगों ने कुछ समयांतर के बाद बिरलगू (बिल्ली के मल) की धूप सुंघाकर देवता को भ्रष्ट कर दिया उसके बाद देवता की आवाज भी बंद हो गयी और बर्तन मिलने भी बंद हो गए। वास्तव में इन पनघटों में पहले बहुत परहेज हुआ करती थी।
(नैल गांव असवालस्यूँ का बिष्णु धारा)
पौड़ी गढ़वाल के असवालस्यूं स्थित नैल गॉव के पनघट को आज भी सवर्ण के अलावा कोई अन्य वर्ण का व्यक्ति छू दे या रजस्वला स्त्री पानी भरने चली जाए तो वहां सांप निकलने शुरू हो जाते हैं. और पानी के धारे से कुछ समय के लिए पानी बहना बंद हो जाता है। यह घटना मेरी आँखों देखी है. मेरे ताम्र-पात्र में भी दो एक बार इसी पनघट में स्वर्ण जैसे चमकीले छोटे-छोटे छ; इंच से एक फिट लम्बे सर्प आये हैं जिन्हें फिर मैं धारे में ही छोड़कर आया हूँ। नैल मेरी चाची का गॉव हुआ इसलिए मेरा वहां आना जाना काफी था। ऐसे कई पनघट कुमाऊ में भी हैं, चम्पावत में बालेश्वर मंदिर के पास एक नाव, एकहत्था नाव, अल्मोड़ा में भी कई नाव ऐसी ही हैं वहीँ बिन्ता उदयपुर, पिथौरागढ़ पिंगलनाग, गंगोलीहाट, नैनीताल के हरीशताल क्षेत्र, उत्तरकाशी के कालियानाग स्थली, पर्वत क्षेत्र के जखोल गांव इत्यादि में ऐसे कई पौराणिक पनघट हैं.
कालांतर में इसोटी के पनघट की दशा भी कुछ ठीक नहीं है। न अब वह सुरंग ही दिखती है और न पनघट में विराजमान मूर्तियाँ ही दिखाई देती हैं। मुझे यह कहानी सुनकर सतपुली दुधारखाल मार्ग के तल्ला बदलपुर स्थित वीर भड भौं रिखोला व उनके भड पुत्र लोधी रिखोला का गॉव बयेली याद आ गया जहाँ मेरा जाना उसी दौर में हुआ जिस दौर में मेरा गढ़वाल के इतिहास में थोकदारों की भूमिका पर शोध कार्य चल रहा था। तब वहां के लोगों ने मुझे बताया था कि उनके पूर्वज बताते हैं कि तब भौं रिखोला श्रीनगर दरवार में थे और गॉव में कोई शुभकार्य था। पानी के धारे में हर बर्ष नयार पार की गुफा से मिले परियों के बर्तनों में एक बड़ा डेग (कांसे का भांड) हुआ करता था जिसे सिर्फ भौं रिखोला नामक वीर भड ही उठा सकता था। गॉव वालों के लिए दिक्कत यह थी कि वह बर्तन तभी उन्हें मिलता था जब शर्त अनुसार उसे पनघट से घर भरा हुआ ले जाना होता था। ऐसे में 12 बर्षीय लोधी रिखोला ने डेढ़ कुंतल भारी इस डेग को कंधे पर रखा और घर ले आया। उसी दिन से यह समाचार फ़ैल गया कि भौं रिखोला के घर उसी जैसा वीर भड पैदा हुआ है। खोजी प्रवृत्ति का होने के कारण मैं नगधार धस्माना जाति के लोगों के साथ वहां जा पहुंचा तब नगधार की एक महिला पर कोई देवी आया करती थी जिनका नित्त नियम था कि वे इस पूर्वी नयार में नहाकर वहीँ स्थित मंदिर में पूजा किया करती थी. मैं भी उन्ही के साथ जब नयार तट की उस गुफा में पहुंचा तो मेरे होश उड़ गए एक साथ सैकड़ों चमगादड़ गुफा से बाहर निकले। गुफा निर्ध्वन्ध रूप से अब सन्नाटे में थी मेरे तन के रोंवे खड़े हो गये, लेकिन जब गुफा के ऊपरी हिस्से से टप-टप टपकता पानी देखा तो ऊपर आपरुपी सैकड़ों देवी देवताओं की मूर्तियाँ देख मैं दंग रह गया मुझे लगा जैसे अलोरा अजन्ता की किसी गुफा में आ गया हूँ। यहीं से पार वह चट्टान थी जिस पर गरुडों का निवास है। यह स्थान रीठाखाल से बहुत पहले तल्ला सीला गॉव की जंगल सीमा का वह अंतिम छोर हुआ जिसके नीचे नयार नदी बहती है। उस गुफा तक तो मैं पहुँच नहीं सका लेकिन बहुत कोशिश के बाद एक पत्थर उस गुफा के अन्दर डालने में सफल रहा जिसकी आवाज गुफा में जगह-जगह टकराकर वापस लौट रही थी। मैंने उस देवगणों को श्रद्धा से नमन किया जिनके युग में ऐसी कहानियां प्रचलित हुई। अब इन कहानियों में कितनी सचाई है यह कह पाना संभव नहीं लेकिन आज भी यह कहानियां उस युग से इस युग तक ज़िंदा हैं। मेरे पुरखों के गॉव से लेकर पूरे देवभूमि के कई गॉवों की।