इंजीनियर की नौकरी छोड़ देवेश्वरी की कैमरे से दोस्ती! विरासत को संजोने के लिए जबरदस्त है अंगुलियों से कैमरे की क्लिक।
इस बेटी से सीखिए!– इंजीनियर की नौकरी छोड़ ट्रेकिंग से स्वरोजगार की अलख जगाती और कैमरे के जरिए पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को संजोती देवेश्वरी बिष्ट!
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
— भले ही इन दिनों देश में घटित हो रही घटनाएँ बेटियों के लिए सुखद नहीं कही जा सकती, लेकिन इन सबके बीच सीमांत जनपद चमोली की इंजीनियर बिटिया के बुलंद होंसलो से लोगों को सीख लेने की जरूरत है। अपनी माटी, थाती और पहाड़ से ऐसा लगाव की इंजीनियर की अच्छी खासी नौकरी को अलविदा कह वह ट्रेकिंग के जरिए स्वरोजगार की अलख जगा रही है। साथ ही सांस्कृतिक विरासत को संजोने का कार्य भी कर रही है । लीजिए आज ग्राउंड जीरो से एक ऐसी ही बेटी की बुलंद हौंसलो की दास्तान से रूबरू करवाते हैं जिसका नाम है इंजीनियर देवेश्वरी बिष्ट ———!!!
सीमांत जनपद चमोली के गोपेश्वर निवासी इंजीनियर देवेश्वरी बिष्ट बेहद साधारण परिवार में पली बढी। परिवार में दो बहिन और एक भाई है। 12 वीं तक की पढ़ाई गोपेश्वर से प्राप्त की। तदोपरांत इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद 2009 में ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता परियोजना में जल संस्थान गोपेश्वर में बतौर अवर अभियंता के पद पर कार्य करना शुरू कर दिया। 3 साल उक्त परियोजना मे कार्य करने के उपरांत उरेडा में बतौर अवर अभियंता पहले चमोली फिर रूद्रप्रयाग (गौंडार लघु जल विद्युत परियोजना) के बाद टिहरी के घुत्तु- घनसाली में कार्य किया। भले ही देवेश्वरी बिष्ट इंजीनियर की नौकरी कर रही थी लेकिन मन हमेशा पहाड़ की डांडी कांठी, खेत खलियान, पंचकेदार, पंचबदरी और बुग्यालो में ही रहता। आखिरकार 2015 में इंजीनियर की नौकरी छोड़ देवेश्वरी नें ट्रेकिंग को अपना मिशन चुना।
देवेश्वरी का बचपन से लेकर इंजीनियरिंग का अधिकांश समय गोपीनाथ की नगरी गोपेश्वर में बीता। इसलिए देवेश्वरी की भोलेनाथ पर अगाढ आस्था है। वो विगत 10 सालों से हर साल भोलेनाथ के पंचकेदारों- केदारनाथ, मद्दमहेश्वर, तुंगनाथ, रूद्रनाथ, कल्पेश्वर के दर्शनार्थ जरूर जाती है। देवेश्वरी को गोपेश्वर से दिखाई देने वाली नंदा घुंघटी की हमेशा बर्फ से ढकी चोटी बेहद भाती थी। जो हर मौसम में अलग अलग आकृति का आभास कराती है। इसके अलावा तुंगनाथ की पहाड़ी और सामने बहती अलकनंदा हमेशा कुछ अलग कार्य करने का संदेश देती थी। राजेश्वरी को बचपन से ही अपनी माटी, थाती, पहाड़, यहाँ के रीति रिवाज, परम्परायें, सांस्कृतिक विरासत से बेहद लगाव रहा है।
नौकरी छोड़ने के बाद देवेश्वरी नें पीछे मुडकर नहीं देखा और ट्रेकिंग के जरिए अपनी नयी मंजिल का रास्ता अख्तियार किया। वो नौकरी के दौरान भी पार्ट टाइम ट्रैकिंग करती थी। जबकि 2015 से लेकर अब तक राजेश्वरी सैकड़ों लोगों को हिमालय की सैर करवा चुकी है। जिसमें पंच केदार, पंच बदरी, फूलों की घाटी, हेमकुंड, स्वर्गारोहणी, कुंवारी पास, दयारा बुग्याल, पंवालीकांठा, पिंडारी ग्लेशियर, कागभूषंडी, देवरियाताल, घुत्तु सहित दर्जनों ट्रैक शामिल हैं। अपने हर ट्रैक के दौरान देवेश्वरी बिष्ट स्थानीय गाइडों से लेकर पोर्टरो, स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिलाती है।
देवेश्वरी केवल ट्रैक ही नहीं करती बल्कि हिमालय की वादियों से एक से एक बेहतरीन फोटो को अपने कैमरे में कैद कर देश दुनिया से रूबरू करवाती है। इनके पास पहाडो की बेहतरीन फोटो का एक शानदार कलेक्शन मौजूद हैं जिसमें 10 हजार से भी अधिक फोटो हैं जिनमें पहाडो, फूलों, बुग्यालो, नदीयों, झरनो से लेकर लोकसंस्कृति, लोकविरासत को चरितार्थ करती फोटो शामिल है। वर्तमान और विगत कई सालों से हमने उत्तराखंड में कोई ऐसी लड़की या महिला फोटोग्राफर और महिला ट्रैकर नहीं देखी जिसने इसे रोजगार का जरिया बनाया हो। ऐसे में देवेश्वरी बिष्ट का कार्य उन्हें दूसरों से अलग पंक्ति में खड़ा करता है। जिसके पास पहाड़ जैसा हौंसला है।
बकौल देवेश्वरी बिष्ट मेरे पास आज भी हर रोज इंजीनियर की नौकरी हेतु आकर्षक पैकेज का प्रस्ताव आता है लेकिन मुझे मेरा पहाड़ ही सबसे अच्छा लगता है। अब मेरा उद्देश्य मेरी माटी, थाती और मेरे पहाड़ की सुरम्य वादियां हैं। मैंने जीवन में कई उतार चढ़ाव देंखे हैं। मैंने अपनी मेहनत और दिन रात काम करके अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। जिसमें मेरी मां और पापा का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा किया और हौंसला दिया। जब मैंने इंजीनियरिंग छोड़ी तो भी सबसे बड़ा हौंसला परिवार से ही मिला। मैं बेहद खुशनसीब हूँ की मुझे बेटियों को आगे बढ़ाने और हौंसला देने वाली माँ-पिताजी, भाई-बहिन मिले। जिनका हर कदम पर सहयोग मिला। मुझे मेरा पहाड़ बेहद सुंदर लगता है। जिसको देखने के लिए लोग लाखों रूपये खर्च करके यहाँ आते हैं। वहीं दुःखी भी हूँ कि आज मेरा पहाड़ पलायन से वीरान हो चला है। सबसे बडा दुःख तब होता है जब यहां से जाने वाले लौटकर वापस नहीं आता। इसलिए मैं चाहती हूँ कि अपने पहाड के लिए कुछ कर सकूँ। ताकि लोग भी मेरी तरह अपने पहाड के बारे में कुछ कार्य करें। मैं चाहती हूँ की यहाँ की लोकसंस्कृति, विरासत, रीति रिवाज, परम्पराओ, लोकजीवन को संजोकर रखूं ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ दे सकूँ। मेरा सपना है कि भविष्य में कुछ सालों बाद इन दस्तावेजों को किताब और आखरों के जरिए लोगों के सामने ला सकूँ। मैंने एक एक रूपया जोड़कर अपना पहला सपना पूरा किया था और एक कैमरा खरीदा। आज यही कैमरा हर समय मेरा सहयोगी होता है। कोशिश करती हूँ कि फोटो द्वारा भी अपने उत्तराखंड और यहां के पहाड़ों की खूबसूरती और लोकसंस्कृति को देश दुनिया के कोने कोने तक पहुँचा सकूँ। अभी तो ये महज एक छोटी शुरुआत भर है अभी बहुत लंबा फासला तय करना बाकी है। मैंने ग्रेट हिमालयन जर्नी नाम से अपनी बेबसाइट और फेसबुक पेज बनाया है ताकि लोगों को आसानी से उत्तराखंड के ट्रैकों के बारे में जानकारी मिल सके। मैं चाहती हूँ कि आप भी जरूर एक बार देखिएगा इस बेबसाइट और पेज को —-!
http://greathimalayanjourney.com
Various tourist destinations of Uttarakhand
https://www.facebook.com/Great-Himalayan-Journey-2519804654910718/
वास्तव मे देखा जाय तो ट्रैकिंग के क्षेत्र मे रोजगार की असीमित संभावनाएँ हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई और नौकरी करने के बाद इंजीनियरिंग को अलविदा कहकर पहाड की एक बेटी को ट्रैकिंग और फोटोग्राफी करते देखना एक सुखद अहसास है। देवेश्वरी नें दिखा दिया है कि वे बेटों से हर कदम पर मीलों आगे है। अगर आप भी पहाडो में ट्रैकिंग करना चाहते हैं तो देवेश्वरी के साथ ट्रैक कर सकते हैं।
इंजीनियर देवेश्वरी बिष्ट के हौंसलो और जज्बे को हजारो सैल्यूट। आशा करते है कि आने वाले दिनों मे युवा पीढ़ी भी देवेश्वरी बिष्ट की तरह अपने पहाड, माटी, थाती का रूख करेंगे—-।
(Deveshwari Bisht)
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!