आपदा का अंतराल 30 बर्ष से घटकर दो या तीन बर्ष हुआ- पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट!

नैनीताल 23 अप्रैल 2018 (हि. डिस्कवर)
विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद व मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट ने एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (एटीआई) द्वारा आयोजित “रोल ऑफ़ मीडिया इन डिजास्टर मैनेजमेंट” कार्यशाला में शिरकत करते हुए जहाँ आपदा प्रबन्धन समेत पूरे भारत बर्ष में घटित प्राकृतिक आपदाओं पर व्यापक चर्चा की वहीँ दूसरी और उन्होंने जल जंगल जमीन को आपदा तंत्र का सबसे बड़ा मुद्दा मानते हुए कहा कि इसी अनदेखी के चलते जो आपदाएं पहले 20-30 बर्ष में एक बार होती थी अब वह दो या तीन साल के अंतराल में होने लगी हैं! वहीँ  एटीआई के निदेशक व पूर्व कमिश्नर अवनेंद्र सिंह नयाल ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बस्तडी की आपदा का जिक्र करते हुए कहा कि कई बार हमें सूचना खुद सूचना मीडिया के बंधुओं से प्राप्त होती है! वहीँ दूसरे सेशन की शुरुआत एटीआई जॉइंट डायरेक्टर विनोद गिरी गोस्वामी व एनडी टीवी के वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी द्वारा की गयी!

(कार्यक्रम को संबोधित करते एटीआई के निदेशक अवनेंद्र सिंह नयाल)

जाने माने पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मानव जनित या प्राकृतिक आपदाएं कब आ जाएँ इनका कोई समय नहीं होता लेकिन हमें इन आपदाओं के प्रति हमेशा चौकन्ना रहना होगा ताकि आपदा के बड़े स्वरूप को हम अपने प्रयासों से सूक्ष्म कर सके! उन्होंने मालपा आपदा का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें बताया गया कि यह आपदा पेड़ काटे जाने से आई जबकि उधर एक भी पेड़ नहीं काटा गया था! ऐसे में तथ्यात्मक बातें सामने लाइ जानी चाहिए नकि इन्हें हलके में लेना चाहिए! उन्होंने कहा कि विगत 2013 की केदारआपदा हो या फिर 2015 का नेपाल का बिनाशकारी भूकम्प! इन दोनों में मीडिया व पुलिस की भूमिका की प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए!

(कार्यक्रम में अपनी बात रखते सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट)

चंडी प्रसाद भट्ट ने घोना झील के तबाह होने के बारे में बताया कि 1970 के दशक में झील के इर्द-गिर्द पेड़ों के काटे जाने से झील एक ही बर्ष में खंडहर हो गयी और आज वहां झील का नामोनिशान नहीं है! उन्होंने बताया कि चमोली, बागेश्वर,पिथौरागढ़, रूद्रप्रयाग, उत्तरकाशी जैसे सीमान्त जिले के सीमान्त गाँव आपदा की जद में आज भी हैं जिनके विस्थापन की कभी बात नहीं होती जबकि नेपाल, भूटान, बंगलादेश, भारत, पाकिस्तान , तिब्बत, चीन सहित सभी पडोसी देश यह भले से जानते हैं कि जेमीन के नीचे कहाँ कहाँ सिल्ट कमजोर पड रही हैं! हम सबको आपदा से लड़ने के लिए एक साथ योजना बनानी होगी तभी एशिया के इस क्षेत्र में आपदाओं की संख्या में घटौती होगी!

(कार्यक्रम में अपनी बात रखते सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट)

उन्होंने कहा कि नेपाल से निकलने वाली छ: से ज्यादा नदियों के उथली होने से विगत दो बर्ष से उत्तर प्रदेश व बिहार का बड़ा क्षेत्र बाढ़ झेल रहा है क्योंकि 2015 में नेपाल में आये बिनाश्कारी भूकम्प के कारण वहाँ की कर्णाली, गण्डकी, बूढ़ी गण्डकी, कोसी, घाघरा सहित अन्य नदियों के माध्यम से इकट्ठा हुई सिल्ट ने तबाही भारत में मचाई है! उन्होंने मीडिया से अनुरोध किया कि वे सिर्फ नेताओं की सुनी सुनाई बातों पर विश्वास न करें कि उत्तराखंड का 70 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है क्योंकि यह सरासर झूठ है! उन्होंने कहा की वे मीडिया से अनुरोध करते हैं कि फारेस्ट के आंकड़ों पर जरुर एक सरसरी नजर दौड़ाकर अपना कर्तब्य निभाएं, क्योंकि प्रदेश की कुल बन भूमि 65 प्रतिशत है जिसमें 26 प्रतिशत गंगा बेसिन है जिसमें 25 प्रतिशत चुगान होता है! कुल जंगल यदि माने जाएँ तो मात्र 45 प्रतिशत हैं जिनमें वर्तमान में लगाए गए जंगल भी शामिल हैं जबकि मात्र 34 प्रतिशत ही बन भूमि में ऐसा भू-भाग है जहाँ अति घना व घना, कम घना जंगल है जबकि बाकी का भूभाग नदी, बुग्याल, चट्टान व हिमालयी भू-भाग से आच्छादित है!

(कार्यक्रम में अपनी बात रखते सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध चंडी प्रसाद भट्ट)

उन्होंने चिपको आन्दोलन का जिक्र करते हुए कहा कि 15 मार्च 1974 में बन माफियाओं का सरकार के साथ गठबंधन के बाद हिमाचल से रैनी गाँव का जंगल काटने श्रमिक हरिद्वार पहुंचे और जब यह बाद ग्रामीणों को पता चली तब रैनी की गौरा देवी के नेतृत्व में कई मातृशक्ति ने गाँव में ही विरोध करना शुरू किया और रैनी के जंगल बचाने निकल पड़ी! उस दौर में हम गोपेश्वर के पीजीकालेज के उन 60 युवाओं को कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने 24 मार्च 1974 में रैनी पहुंचकर वहां के जंगल से लेबर को खदेड़ने में मदद की! उनका मानना है कि पेड़ वनस्पति व जल इन सबका संचार प्रकृति के उपादानों से जुड़ा है अत: इन्हें यों अप्राकृतिक ढंग से बर्बाद न होने दें  क्योंकि सन 2000 में 10 साल के अंदर प्राकृतिक आपदा आई थी और अब इसकी संख्या बढती हुई हर साल हो गयी है यह हमारे लिए बड़ी चेतावनी है!

(कार्यक्रम में अपनी बात रखते वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी)

वहीँ दूसरे सेशन की शुरुआत करते हुए एनडी टीवी के वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने आपदा पर अपनी बात को मीडिया तंत्र से जोड़ते हुए कहा कि चार धाम के लिए बन रही सडक व नदियों पर बन रहे लगभग 500 बाँध आगे के लिए आपदा की बहुत बड़ी चेतावनी साबित होने वाली हैं जो हमें अभी ठीक वैसे ही नहीं दिखाई दे रही जैसे चौराबाड़ी झील के फटने से पूर्व नहीं दिखाई दी थी जबकि उसकी चेतावनी मीडिया पहले ही दे चुका था! उन्होंने आपदा की सच्चाई बिना लाग-लपट के बयान करते हुए कहा कि मानवजनित आपदा में गरीबों के आपदाग्रस्त होने पर खबर अखबार के दफ्तर या फिर न्यूज़ चैनल्स के ऑफिस तक पहुँचने से पहले ही रास्ते में दम तोड़ देती है!

उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि चोरबाडी झील जो पूरी तरह तबाह हो गयी है व उसके दुबारा भरने के एक प्रतिशत भी चांस नहीं हैं उसे सीमेंट की ऊँची दीवार खड़ी करके पोता जा रहा है जो आने वाले समय में पुनः विस्फोटक का कार्य कर सकती है! उन्होंने कहा ऐसा भी नहीं है कि आपदा के क्षेत्र में सब कुछ सामान्य होता है रहा है बल्कि यह कहा जा सकता है कि कुछ बेहतर तो हो रहा है लेकिन उसकी रफ्तार बेहद कम है! उन्होंने 2013 की आपदा को उत्तराखंड के बांधों से जोड़ते हुए कहा कि यह साबित हो चुका है कि ये बाँध कहीं न कहीं प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के माध्यम बने जिससे ऐसी प्राकृतिक आपदा आई! ऐसे बाँध न सिर्फ आपदा का कारण बन रहे हैं बल्कि नदियों की अस्मिता भी मिटा रहे हैं!
उन्होंने बांधों पर चुस्की लेते हुए कहा कि पूरे देश में 3, 30000 मेघावाट बिजली के पावर प्लांट हैं ऐसे में हमको बिजली की इतनी भी आवश्यकता नहीं है अकेले उत्तराखंड की हर नदी में डाम बना डालो जिनकी संख्या 500 या इससे अधिक हो! क्योंकि ये बाँध आने वाले समय में आपदा के सबसे बड़े कारक होंगे ऐसा मेरा मानना है! हृदयेश जोशी ने चार धाम मार्ग प्रोजेक्ट पर कहा कि यह परियोजना 12 हजार करोड़ की लागत की है जिसमें 50 हजार से अधिक पेड़ काटे जायेंगे! लेकिन इस परियोजना को एनजीटी की नजर से बचाने के लिए यह सडक अलग अलग हिस्सों में काटी जा रही है! उन्होंने कहा कि लगभग 39 लैंडस्लोब जोन अकेले गंगोत्री रेंज में हैं जहाँ उत्तरकाशी से गंगोत्री तक मार्ग के चौडीकरण के लिए 5000 पेड़ काटे जा रहे हैं! अगर ऐसा हुआ तो प्राकृतिक संतुलन असंतुलित हो जाएगा और आपदाएं मुंह उठाये खड़ी दिखेंगी!
उन्होंने रुद्रप्रयाग जिले की 45 बर्षीय महिला सुशीला भंडारी का जिक्र करते हुए कहा कि सिंगौली-भटवाडी बाँध का पुरजोर विरोध कर रही सुशीला भंडारी को जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया और जब उन्हें जज द्वारा यह पूछा गया कि आप अपनी जमानत क्यों नहीं करवा रही तब सुशीला का जवाब सुनकर जज साहब भी हैरान रह गये क्योंकि सुशीला ने कहा था कि अगर आपके रहते मुझ जैसी निर्दोष को जमानत लेनी पड़ी तो धिकार है मुझ पर! आप ही बताएं कि मेरा दोष क्या है! आखिर न्यायधीश को सुशीला भंडारी को रिहा करना पड़ा!उन्होंने चेताते हुए कहा कि नदी, जंगल और जमीन बचाने के लिए मीडिया को बेहद सजग होकर निश्वार्थ कार्य करना होगा तभी हम आये दिन मानवजनित आपदाओं का मुकाबला कर सकते हैं जिन्हें हम बड़ी चालाकी से प्राकृतिक आपदाओं का नाम दे देते हैं!  इस अवसर पर उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों के जिला सूचना अधिकारी, जिला आपदा प्रबन्धन अधिकारी व मीडिया जगत के कुछ चुनिन्दा पत्रकार मौजूद थे! कार्यक्रम का संचालन एटीआई की सहायक प्रोफेसर डॉ. मंजू पांडे व सहायक प्रोफेसर ओमप्रकाश ने किया!

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