आज भी रहस्यमय है सोमेश्वर महाराज व रानी हिमी धुरांइटी का वह मिलन!

(मनोज इष्टवाल)

यकीन मानिए श्रृष्टि की इस अनूठी कल्पना में जाने कितने रहस्य परत-दर-परत काज भी छुपे हैं जिनसे पर्दा उठाना अभी शेष है! उन्हीं रहस्यों की पड़ताल में जब आप उसकी गहराई तक जाने की कोशिश करते हैं तब पाते हैं कि कुछ तो गड़बड़ है जो आज भी परदे की ओट में है लेकिन सब कुछ कहता सुनता दिखाई देता है! ऐसा ही एक महत्वपूर्व किस्सा 22 गाँव पर्वत क्षेत्र की पट्टी पंचगाई, अड़ोर व बडासू के लोकदेवता सोमेश्वर व हिमी कोट (कोटीकोट) जिसे वर्तमान में कोटगाँव कहते हैं की राणी हिमी दुरांईटी का देखने सुनने को मिलता है!

कोटगांव कभी पर्वत क्षेत्र की रियासत का राजधानी क्षेत्र माना जाता था जिसके राजा जौंरा राउत (ज्यूँरा रावत) कोटगांव से लगभग आधा किमी दूरी पर स्थित राण्याकोट में रहता था! कोटगाँव में राणी हिमी दुरांईटी हिम्मी कोट में रहती थी जिसे कोटीकोट भी कहा गया है! गढवाली भाषा में कोट अर्थात किला कहा जाता रहा है! राजा जौंरा राउत की राणी हिमी दुरांइटी बहन थी या पत्नी?  यह स्पष्ट नहीं हो पाया लेकिन यहाँ के सयाना रघुबीर सिंह रावत इस रहस्य से पर्दा हटाते हुए कहते हैं कि उनके वंशज इस पूरे इलाके के राजा हुआ करते थे जिनका राज सुदूर भराडसर ताल से लेकर हर की दून स्वर्गारोहिणी तक फैला था! राजा जौंरा राउत की मृत्यु के बाद उनके पुत्र हुम्मापति जिन्हें हिमापति भी कहा जाता है ने राण्याकोट छोड़कर कोटिकोट में रहना शुरू कर दिया जिसे अब राणी दुरांईटी के हिमिकोट नाम से जाना जाता है! जबकि उसकी समस्त बामांगनियां कोटगांव के बांयी ओर लगभग आधा या पौन किमी दूर राण्याकोट में रहती थी!

राजा हिमापति ने अपने कार्यकाल में सुरक्षा की दृष्टि से मजबूती देने के लिए लोहे की सान्गलों का निर्माण करवाया जिसमें पहली सांगल तो राण्याकोट की राणियों के लिए बनाई गयी थी ताकि जब राणी के पास राजा को जाना हो तो वहां से घांड बजाया जा सके! विपत्तिकाल में यही उपक्रम रानियाँ कर सकती थी! दूसरी सांगल सुपिन पार तल्ला पाँव-मल्ला पाँव तक पहुंचाई गयी जहाँ राजा के तीमारदार या सैन्य बल रहा करता था! पर्वत क्षेत्र में विपत्ति-काल में इस सांगल के जरिये सूचना भेजी जाती थी! सांगल पर झूलते लोहे के घांड जब बजते तो हर मुसीबत से निबटने के लिए सैन्य बल पहुँच जाया करते!

ऐसी ही एक सांगल हिमीकोट से सुपिन नदी के पास निकलते गर्म स्रोत व ठंडे स्रोत पानी को जाती थी! जिसे मांडातोक या दुबाई कहते हैं! यहाँ से सांगलों के माध्यम से ही ठंडा जल पीने व गर्म जल नहाने के लिए खींचा जाता था जो बड़े-बड़े ताम्र पात्र में यहाँ लाया जाता था!

यह कहानी जहाँ अद्भुत है वहीँ इसमें कुछ तथ्यों में बिसंगतियां नजर आती हैं क्योंकि अगर यहाँ का राजा हिमपति था तो फिर राजा जौंरा राउत कौन था? क्या राजा जौंरा राउत का पुत्र राजा हिमपति या हुमापति हुए? जिनकी पुत्री हिमी धोरांइटी हुई ! यह तो तय है कि राजा जौंरा राउत पर्वत क्षेत्र का सबसे पौराणिक राजा हुआ क्योंकि यहाँ जब भी सोमेश्वर का कफुआ गया जाता है तब जब तक जौंरा राउत का नाम नहीं आता तब तक न सोमेश्वर देवता प्रकट होता है और न उसकी “रास की फुतडी” लगती है! कफुवा लगाते समय सोमेश्वर महाराज को समसू या समुदेवा नाम से पुकारा जाता है! इस कफुआ गायन में पहले राजा जौंरा राउत को प्रसन्न कर नचाने का निमन्त्रण दिया जाता है जिसके बोल हैं:- “बाईंसोली बजै रुई-चुई, जौंरा राउता नाचौंदा कफुआ रेsss, तुमारे क्यों आयो आपुका बेसुका, कुल्लू छोड़े कश्मीरा जखोले आयो कफुआ रेsss! किनी बाटे पूजण लायो .. कफुआ रेsss…!”

अब समस्या यहाँ यह पैदा हो रही है कि बाजगी आया औजी जब कफुआ में जौंरा राउत का वर्णन करता है तब समुदेवा या समसू, सोमेश्वर का भी कुल्लू-कश्मीर से जखोल गाँव आने की बात करता है! तो क्या जौंरा राउत जखोल का राजा था! इतिहास की गर्त में अभी और क्या क्या छुपा है उसके पन्ने पलटने आवश्यक हैं क्योंकि हमारे समाज ने हमें सिर्फ अपनी गीत और गाथाओं में ही जीवित रखा! पढ़ा लिखा समाज न होने के कारण यहाँ का इतिहास भाट, चारण, औजी, बेडा इत्यादि के मुंह से एक युग से दूसरे युग तक गुजरता हुआ चला गया लेकिन आज भी हम इन गाथाओं को इतिहास में तब्दील करने की जहमत नहीं उठाते जबकि हम वर्तमान में शिक्षित समाज के अंश हैं!

बहरहाल यहाँ यह बात तो तय है कि राणी हिमी धुरांइटी राजकुंवारी थी क्योंकि अगर वह किसी की पत्नी होती तो सोमेश्वर महाराज पहली ही नजर में उस पर मन्त्र मुग्ध नहीं होते और उसे मिलने रेक्चा धारकोट जहाँ उनकी सर्वप्रथम आने की बात कही जाती है से हिमीकोट नहीं आते! यहाँ के जनमानस में किंवदंतियाँ हैं कि गोरखा आक्रमण के दौरान गोरखाओं द्वारा कई मंजिला हिमिकोट, कोटिकोट, राण्याकोट, मांडाकोट, लूटकर तहस नहस कर दिया था लेकिन हिमिकोट में राणी हिमी धुरांईटी व उसके वंशज रावत जैसे तैसे तहखाने में छुपकर अपनी जान बचा लेते हैं! पुनः कोट गाँव बसता है व हिमीकोट की राणी हिमी धुरांईटी उसी महल में रहने लगती है! एक दिन वह जब मांडातोक के गर्म जल से स्नान कर रही थी या स्नान करके बदन सुखा रही थी तब पंचगाई के भालुका क्षेत्र से सोमेश्वर देवता की नजर उस पर पड़ती है! ऐसी रूप यौवना उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी वे उस पर मन्त्रमुग्ध हुए और उन्होंने तत्काल उसे अपने चमत्कार से पत्थर की शिला बना दिया! तब यही जुलाई माह चल रहा था! सोमेश्वर महाराज हिमी धुरांइटी से मिलने कोटगांव पहुंचे और उनके आदेश पर हिमिकोट उनके अधिकार क्षेत्र में हो गया! वहां अब कोटगाँव के निवासियों के लिए देवतुल्य क्षेत्र घोषित था इसलिए किसी ने भी उस कोट में जाने की तब से हिम्मत नहीं की लेकिन उस काल से वर्तमान तक हर बर्ष सोमेश्वर महाराज रानी हिमी धुरांईटी से मिलने हिमिकोट आते हैं व कोटगाँव में दो तीन दिन का प्रवास अपने मंदिर में निहित करते हैं जहाँ उनकी मूर्ती की हर दिन पूजा अर्चना होती है!

पंडित रामकृष्ण बताते हैं कि हिमीकोट के खंडहर उन्होंने बचपन में देखे थे! वहां बड़ी बड़ी तराशी हुई कई मीटर लम्बी शिलाखंड मौजूद हैं! हिमीकोट आज खंडहर है लेकिन उसके अंदर से एक रास्ता सुपिन नदी होता हुआ पंचगाई क्षेत्र में जाता है ऐसी यहाँ जनधारणा है! हिमीकोट के गर्भ में क्या क्या है यह एक रहस्य ही है क्योंकि देवआज्ञा के बाद से किसी ने भी इस किले में प्रवेश नहीं किया इस कारण आज किले के ऊपर कसमई, वेकील व मौल काँटों के बड़े घने पेड़ उगे हैं जो बहुत खतरनाक माने जाते हैं! यह आश्चर्यजनक है कि जब देव डोली भ्रमण पर कोट गाँव पहुँचती है तो उसे नंगे पैर कांधों पर नचा रहे ग्रामीणों को देवता की डोली लगभग खींचती हुई सी उस हिमीकोट के कंटीले जंगलनुमा महल में प्रवेश करवाती है जहाँ देखने भर से ही डर लगता है! यहाँ सोमेश्वर देवता की डोली लगभग आधा घंटा खूब झूलती है व उसके बाद उन काँटों के वृक्षों की ओट से बाहर निकलती है! यह आश्चर्यजनक है कि न डोली नचाने वाले कहारों के नंगे पैरों पर कांटें चुभते हैं न तन पर कहीं काँटों की खरोंचें होती हैं और न डोली का रेशमी मखमली कपड़ा ही फटता है जबकि वह जंगलनुमा हिमीकोट घने काँटों के वृक्षों से आच्छादित है!

बहरहाल राणी हिमी धुरांइटी व सोमेश्वर महाराज का यह मिलन कैसा और कौन सा मिलन है इसके बारे में अभी और तफ्शीश की आवश्यकता है लेकिन यह घटना गोरखा काल में घटित हुई जाने क्यों गले से नीचे यह बात नहीं उतरती! मुझे लगता है हिमी धुरांइटी व सोमेश्वर देवता का यह मिलन पौराणिक होगा हाँ यह जरुर हो सकता है कि गोरखाकाल तक यह हिमीकोट सरसब्ज रहा हो जिसे गोरखाओं ने बाद में लूटा होगा!

(मित्र ठाकुर रतन सिंह असवाल (हिमालय दिग्दर्शन) के साथ कोटगांव पर्वत क्षेत्र)

१०-०७-२०१९

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