आखिर नैनीताल के 60 तालों में क्यों नहीं ढूंढ पाए हम घुर्र्ल ताल..! घोड़ाखाल स्थित घुर्र्ल ताल आज भी है वजूद में !
आखिर नैनीताल के 60 तालों में क्यों नहीं ढूंढ पाए हम घुर्र्ल ताल..! घोड़ाखाल स्थित घुर्र्ल ताल आज भी है वजूद में !
(मनोज इष्टवाल)
बहुत कम जानते हैं कि छखाता परगने का त्रिऋषि नगरी कहलाने वाले जिला नैनीताल छखाता यानि “षष्टिताल” के नाम से भी जाना जाता रहा है अर्थात पूरे जनपद नैनीताल में 60 ताल होने के कारण यह पूरे प्रदेश में सरोवर नगरी के रूप में भी प्रसिद्ध है. शायद ही पूरे देश में ऐसा कोई पहाड़ी जनपद हो जिसमें 60 ताल होंगे लेकिन बिना शोध व मानव लापरवाही के चलते आज पूरे नैनीताल जनपद में अँगुलियों में गिने जाने वाले 9 ताल ही शेष हैं उनमें से भी 2 ताल जिनमें लोहखाम ताल व हरीश ताल आज भी यहाँ के लगभग 90 फीसदी निवासियों को ही नहीं पता हैं कि कहाँ स्थित हैं.
मुख्यतः पर्यटकों को कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा चिन्हित 7 तालों की ही जानकारी है जिनमें नैनीताल की नैनीझील, सात-ताल, नौकुचिया ताल, भीमताल, खुर्पाताल, गिरि ताल, नल-दम्पति ताल इत्यादि शामिल हैं लेकिन नैनीताल से मात्र 20 किमी. दूरी पर स्थित घुर्र्ल ताल आज भी आम जन की नजरों से ओझल है, जिसका वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी पढने को मिल जाएगा.
घुर्र्ल ताल आदिकाल में राजाओं का शिकारगाह हुआ करता था जिससे जुडी कई किंवदन्तियों में एक लोककथा गोल्जू देवता के साथ भी जोड़कर देखी गयी है. आम जनमानस में धारणा है कि गोल्जू देवता यहाँ घोड़े के साथ समा गए थे तो बुद्धिजीवी समुदाय का कहना है कि यहाँ गोल्जू देवता का घोड़ा पानी पीया करता था.
वहीँ कुछ लोग यह भी कहते हैं कि ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के घोड़े यहीं पानी पीया करते थे और यहीं उनकी घुड़साल भी थी इसलिए इस स्थान का नाम घोड़ाखाल पड़ा है.
मेरे व्यक्तिगत शोध से मेरा मानना है कि घुर्र्र्ल ताल ही अपभ्रंश होकर घुड़ताल हुआ और बाद में ब्रिटिश काल में अंग्रेजी हुकूमत ने इसे घोड़ाखाल का नाम दे दिया. जबकि यहाँ पूर्व में घना जंगल था और मृगछोने यहाँ प्रकृति के स्वछन्द वातावरण में विचरण करते थे जिन्हें स्थानीय भाषा में घुर्र्ल कहा गया है. इस ताल का सीधा सम्पर्क त्रिऋषि ताल (नैनीताल) से जोड़ा गया है.
वर्तमान में सन 1966 के बाद यह क्षेत्र सैनिक स्कूल घोड़ाखाल की सीमान्तर्गत आ गया जिससे इस ताल का महत्व ही गौण हो गया और लगभग आधे पौन किमी. तक फैला यह ताल दो हिस्सों में बंटकर अब मात्र 50 से 70 मीटर में सिमट कर अपने वजूद होने के आज भी प्रमाण देता है.
घुर्र्ल ताल आज के क्षेत्रीय लोगों में से अधिकतर नहीं जानते हैं हाँ भले ही बुजुर्ग कहते हैं कि जहाँ घोड़ाखाल (खाल=ताल) था वह काफी लंबा चौड़ा हुआ करता था लेकिन घुर्र्ल ताल के सन्दर्भ में अधिकतर का मानना यह है कि यहाँ अंग्रेजों के आने से पहले घुर्र्ल बहुतायत संख्या में निवास करते थे. घुर्र्ल खाल (ताल) से यह कब घोड़ाखाल हुआ इस पर यहाँ के आम जनमानस यही कहते हैं कि ब्रिटिश शासन काल में उनकी घुड़शाल यहाँ होने के कारण इसे घोड़ाखाल नाम से पुकारा जाने लगा जबकि ज्यादातर लोग इसे उंचाई पर स्थित गोल्जू मंदिर के कारण गोल्जू देवता से जोड़कर भी देखते हैं.
ज्ञात हो कि इससे पूर्व मेरे द्वारा नैनीताल के सुदूरवर्ती क्षेत्र में स्थित लोहखाम ताल व हरीशताल का जिक्र भी सोशल साईट के माध्यम से आप तक पहुंचाया था . मुझे ख़ुशी है कि आज शैलानी इन दोनों तालों तक पहुँचने के लिए बेहद उत्सुक हैं लेकिन सड़क मार्ग से न जुड़े होने के कारण मन मसोसकर रह जाते हैं. सिर्फ ट्रेकर्स ही वहां पहुंचकर अपनी थकान मिटाते हैं.