आईये पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी के किये जुटे!

आईये पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी के किये जुटे!

विश्व पृथ्वी दिवस वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रमोहन ज्योति का नजरिया!
मित्रो! नासा के मुताबिक धरती का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. कारण एक नहीं; कई हैं. भौतिकता वास्तविकता पर हावी है. बिजली उपकरण अब एस्सेसरी नहीं नेसेसरी हो गए हैं. खनन, पेड़ों का कटान, भूजल का अधिक उपयोग, महानगरों से लेकर गावों तक ईंट-कंक्रीट के मकान ये सभी पृथ्वी के साथ अत्याचार है. नदियां मर रही हैं. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जंगल जल रहे हैं. खेती खत्म हो रही है. किसान आत्महत्या कर रहा है. अगर इसी तरह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होता रहा तो स्थिति भयानक हो सकती है.

मैं बचपन से प्रकृति के बहुत पास रहा. सब-कुछ ओरिजिनल था- मंगर का पानी, अपने ही खेतों का गेहूं और धान, दालें-मसाले-सब्जी भी अपनी ही. अपने ही खेतों की सरसों और तिलों का तेल. बस गुड़, नमक और कपड़ा ही खरीदते थे. पर अब ऐसा नहीं है मेहनत कोई नहीं करना चाहता. सबकुछ बाजार से खरीदते हैं.

खैर… ये सब आप लोग भी जानते हैं, भाषण नहीं देना चाहता हूँ. आप लोगों से सिर्फ एक गुजारिश करना चाहता हूँ. जो लोग सक्षम हैं प्रकृति को बचाने के लिए अपने-अपने स्तर पर अपनी-अपनी भागीदारी सुनिश्चित कीजिए. मुझे 27 साल हो गांव से निकले हुए. पिछले 30 वर्षों में मेरे गाँव के प्राकृतिक स्रोत का पानी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. किसी ने उस स्रोत को बचाने की कोशिश नहीं की. अब हम पिछले तीन वर्षों से छोटी सी कोशिश कर रहे हैं. अब तक 570 बांज (क्वेरकस ल्यूकोत्रिकोफोरा) के पेड़ लगाए हैं. इनमें से 30 फीसदी ही बच पाए हैं. 15 वर्ष तक लगातार लगने हैं.

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