आंदि-जांदी सांस छई तू! मेरा स्वीणा की बांद छई तू।

आंदी-जांदी सांस छै तू …मेरी स्वीणा कि बांद छै तू…..!
(मनोज इष्टवाल)
राज्य आन्दोलन पर बनी फीचर फिल्म “तेरी सौं” का शायद यह गाना अभी तक हर एक की जुबान पर यूँही सजा होगा लेकिन अगर हम कुछ भूले है तो वो हैं आलोक मलासी जिन्होंने इस फिल्म को संगीत दिया है. बेहद सरल ब्यवहार का यह ब्यक्तित्व मुझे युफा अवार्ड फंक्शन के एक ऐसे कोने में बैठा हुआ दिखा जिसे हम दर्शक दीर्घा कह सकते हैं. इसी अवार्ड की शुरुआत करने वाले जो मित्र उनके साथ कभी खूब कहकहे लगाया करते थे शायद वे उन्हें या तो पहचान नहीं सके या फिर जान बूझकर पहचानना नहीं चाहती. चकाचौंध भरी इस इंडस्ट्री का शायद यही दस्तूर भी है कि जो आपको अपनी ऐंठ में दिखे वही प्रथम पंक्ति पर विराजमान रहे बाकी सब जयराम जी की.

आलोक मालासी जी ने रंगमंच की शुरुआत प्ले से की. उन्होंने लगभग 50 से अधिक नाटकों में संगीत दिया. फीचर फिल्म तेरी सौं से लेकर हन्त्या, याद आली टिहरी, जय नागराजा सेम-मुखेम, गढ़वाली सोले, आज दो अभी दो, धरती हमरा गढ़वालै की सहित दर्जनों ऑडियो वीडियो अलबम का संगीत देने वाले इस महारथी का सम्मान तो दूर उन्हें मंच से आमंत्रित भी नहीं किया गया जबकि मैं देख रहा था कि उनके ही चेले मंच से उन्हें पुरस्कृत कर रहे थे जिन्होंने इंडस्ट्री को अपने चालीस से ज्यादा साल दे दिए हैं
सच कहूँ तो यह पीड़ा इसलिए भी होती है कि क्या वास्तव में पुरस्कार भी अब सिर्फ चापलूसी पर दिए जाते हैं. मुझे तो अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि आलोक मालासी जैसे ब्यक्तित्व को आखिर उत्तराखंड फिल्म एसोसिएशन ने अभी तक खारिज कईं किया हुआ है.
उम्मीद है अगले साल के अवार्ड फंक्शन में इस टीम की उन पर जरुर नजरें पड़ेंगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *