अस्मा जहांगीर….बेबाक शख्सियत अचानक मौन हो गयी।

(ऊषा नेगी)
अस्मा जहांगीर एक ऐसी शख्सियत थीं ,जिनका नाम जेहन में आते ही ऐसी छबि उभरती है कि जिनका जीवन सिर्फ लोगों के लिए ही संघर्ष करने के लिए हुआ हो। पाकिस्तान की जानी -मानी वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर को ‘आयरन लेडी ‘के रूप में भी जाना जाता है। उनका रविवार को 66 वर्ष की उम्र
में दिल का दौरा पड़ने से विगत दिनों निधन हो गया।
उन्होंने हमेशा पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका और आइएसआइ के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी मृत्यु
पर वरिष्ठ अधिवक्ता अदील रजा ने बताया ,’रविवार सुबह जहांगीर  को दिल का दौरा पड़ा। उन्हें तुरंत लाहौर के हमीद लतीफ अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकाम  रहे। ‘उनकी बेटी मुनीजे जहांगीर ने ट्वीट किया ,’माँ अस्मा जहांगीर के गुजर जाने से मैं बिल्कुल टूट गयी। हम शीघ्र ही अंतिम संस्कार की तारीख घोषित करेंगे। ‘उनके निधन पर सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मियां साकिब निसार
,पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ,पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और पाकिस्तान तहरीक -ए -इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान ने शोक जताते हुए इसे पाकिस्तान के लिए बड़ी क्षति बताया वह सुप्रीमकोर्ट बार एसोसिएशन कीपहली महिला अध्यक्ष रहीं। जहांगीर पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के संस्थापक सदस्यों में थीं। वह आयोग की अध्यक्ष भी रहीं। जनरल जिया उल हक के सैन्यशासनकाल में लोकतंत्र की स्थापना  के लिए किये गये आन्दोलन के कारण उन्हें 1983 में जेल भी हुई। मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1992 में उन्हें अमेरिकन बार एसोसिएशन इंटरनेशनल ह्यूमनराइट्स अवार्ड भी मिला।
एक नौकरशाह पिता तथा औरत की स्वतंत्र पहचान के लिए प्रयासरत माँ की संतान अस्मा और उसकी बहिन हिना ने 1980 में पाकिस्तान की पहली महिला ला फर्म बनाई और क़ानूनी ज्यादतियों की शिकार महिलाओं के लिए आशा का केंद्र बन गयीं। दोनों ने मिलकर ‘वूमेन एक्शन फोरम ‘नामक एक संगठन भी बनाया। 1983 में कुख्यात आसिया बीबी कांड हुआ ,जिसमें 13 साल की अंधीआसिया को उसके मालिकों ने अपनी हवस का शिकार बनाकर गर्भवती कर सारा दोष उसी पर लगाकर जेल भेज दिया। अस्मा ने उसकी आवाज को जनसाधारण तक पहुंचाया और साथ ही साथ उनकी ला फर्म ने पेचीदा अदालती लड़ाइयों के माध्यम से आसिया बीबी को मुक्त भी कराया। अस्मा ,एक ऐसी औरत थीं ,जिन्होंने कभी अवाम की राय या दबाव के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंनेे न सिर्फ औरतों को कानून के पेशे में आने का रास्ता दिखाया ,अपितु इसके लिए वह कहीं  झुकीं भी
नहीं।
अस्मा जहांगीर ने 1987 में ह्यूमनराइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान की स्थापना की और 2011 तक उसकी अध्यक्ष भी रहीं। एक गैर -सरकारी संगठन होने के बाबजूद यह कई मामलों में भारतीय नेशनल ह्यूमनराइट्स कमीशन से बेहतर साबित हुआ। इस संगठन पर फौज और जेहाद समर्थकों ने पश्चिम और भारत के एजेंट होने तथा विदेशी फंडिंग हासिल करने के आरोप भी लगे लेकिन आज भी पाकिस्तान का सभ्य समाज इसे देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध लड़ाई में सबसे बड़े हथियार के रूप में देखता है उन्हें 1995 में रमन मैग्सेसे और मार्टिन एनल्स अवार्ड मिला। 2005 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन हुआ और 2010 में पाकिस्तान का ‘हिलाल -ए -इम्तियाज ‘सम्मान मिला। अस्मा जहांगीर पाक जेल में मारे गये भारतीय सरबजीत और वर्तमान में जेल में बंद कुलभूषण जाधव की भी आवाज बनीं। वर्ष 2008 में सरबजीत की रिहाई की मांग करते हुए कहा था ,भारत और पाकिस्तान को अपनी अपनी जेल में बंद कैदियों को उनके देश भेज देना चाहिए। सरबजीत को भारत वापस सौंप देना चाहिए। जाधव मामले में पूछा था ,’सरकार को राजनयिक पहुंच न देने की सलाह किसने दी?’ उनकी मृत्यु के बाद ऐसा लगता है कि अस्मा जहांगीर भी हर उस इन्सान की तरह एक विवादित शख्सियत थी जो कमजोरों के हक में खड़ा होता है और परिस्थितियों को चुनौती देता है। अस्मा जहांगीर का अचानक चले जाना एक बहुत बड़ी क्षति है मानवाधिकारों की रक्षा के प्रयास के रूप में ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।

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