अलकनन्दा घाटी में जंगलों के भगीरथ: सराद सिंह कण्डारी…!

अलकनन्दा घाटी में जंगलों के भगीरथ: सराद सिंह कण्डारी…!

(जे0पी0मैठाणी)
घर की छत पर रखी टिन की जी.आई. शीट की एक ट्रे में चटक-चटक कर आंवले के बीज फट रहे हैं। चीड़ के पंख लगे बीजों को एक सिंदूरी रंग के घोल में भिगोकर रखा गया है। ये सब हम देखते और कौतूहलवश आपस में चर्चा करते कि ये आखिर है क्या? वास्तव में ये बीजों के जमने-जमाने का विज्ञान सीखने की क्लास थी। जो हमने हाल ही में वन विभाग के अलकनन्दा वन प्रभाग से सेवा निवृत्त हुए सराद सिंह कण्डारी उर्फ़ राजेन्द्र सिंह से सीखी थी। मूलतः जनपद चमोली के ग्राम कुजासू जयबाड़ा में श्री मथुरा सिंह कण्डारी (आजाद हिन्द फौज से जुड़े) एवं श्रीमती संकरी देवी के घर जन्मे सराद सिंह कण्डारी दो भाई और तीन बहनों में सबसे बड़े थे। प्राइमरी और जूनियर हाई स्कूल की शिक्षा गाँव के कुजासू जयबाड़ा के स्कूल में और हाई स्कूल राजकीय इंटर काॅलेज कर्णप्रयाग से पास करने के बाद वर्ष 1979 के शुरूआत में सबसे पहले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी जिन्हें उस दौर में प्लान्टेशन जमादार कहा जाता था के रूप वन विभाग में अपनी सेवा शुरू की। बाद में सितम्बर 1979 में फाॅरेस्ट गार्ड के रूप में भर्ती हुए सराद सिंह कण्डारी जनपद चमोली के अलकनन्दा वन प्रभाग एवं पीपलकोटी रेंज के वे समर्पित फाॅरेस्टर रहे और वर्ष 2002 में पृथक प्रदेश बनने के बाद पदोन्नति होकर फाॅरेस्टर बने। तेईस साल की अनवरत सेवा के बाद उन्हें 2002 में पहला प्रमोशन दिया गया। जहाँ वन विभाग जैसे महकमे में जुगाड़ु लोग दस साल में दो-दो प्रमोशन पा जाते हैं। वहाँ समय-समय पर वन विभाग सामाजिक संगठनों, राजनैतिक पार्टियों के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के एवं वनीकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करते हुए सराद सिंह कण्डारी ने पदोन्नति की परवाह नहीं की। उन्हें 10 से अधिक बार स्वयं वन विभाग ने सम्मानित किया।

सराद सिंह कण्डारी एक ऐसे फाॅरेस्टर हैं जिनके वन क्षेत्र में आग लगने पर वो तुरन्त अपने साथियों और कभी-कभी जब अकेले पड़ जाते तो क्षेत्र के महिला मंगल दलों की कुछ प्रतिनिधियों तथा अपने पूरे परिवार के साथ जंगल की आग बुझाने पहुँच जाते फिर पीछे से ग्रामीण और परिवार के लोग जैरिकैन में पानी भरकर और प्रेशर कुकर में खिचड़ी लेकर तिमले के पत्तों के साथ जंगल में पहुँच जाते। हमने बचपन से उनके सहकर्मियों नौरख से साबी देवी और सुनील लाल, गडोरा से कृपाल सिंह, द्विंग से आनन्द सिंह, पोखनी से गजे सिंह, बौंला से फते सिंह, जैंसाल से शिव लाल, बिशम्भर, अनुसूया आदि को स्थानीय ग्रामीणों और घसियारियों से इसलिए लड़ते-झगड़ते देखा कि वो उनके लगाये गये वनीकरण क्षेत्रों को कभी-कभी नुकसान पहुँचाने का प्रयास करते हैं। लेकिन दूसरी ओर कण्डारी जी के कुशल नेतृत्व और व्यवहार की वजह से सभी महिला मंगल दलों और ग्राम प्रधानों तथा वन पंचायत सरपंचों के बीच उनकी अच्छी छवि सदैव मददगार हुई। यही कारण है कि लगभग 1500 हैक्टेयर के वनीकरण क्षेत्र जो मुख्यतः पीपलकोटी रेंज का ही अंग है उसमें छिनका, बौंला, हाट, जैसाल, मठ, बेमरू, गुनियाला, नौरख, गौंड़ा, गाड़ी, बिरही, श्रीकोट, ल्वांह, दिगोली, बटुला, मेहर गाँव के साथ-साथ किरूली के रिजर्व वन क्षेत्रों में जबर्दस्त वनीकरण के प्रयास किये गए जिसका परिणाम है कि इस रूखे सूखे क्षेत्रों में हरियाली दिखाई देती है। संयुक्त वन प्रबन्धन के तहत गडोरा, सल्ला रैतोली, कम्यार में लगभग 70 से 80 प्रतिशत के सफल वनीकरण की वजह से सुराई, बांज, भमोरा, जामुन, पिन्ना आदि का जंगल विकसित हुआ है। अगथला, नौरख, पाखी, टंगणी तल्ली, टंगणी मल्ली, गणाई, दाड़मी, लंगसी, पगनौ, लांजी, पोखनी, द्विंग, किमाणा और पल्ला जखोला गाँव में आज कई सुन्दर वनीकरण के क्षेत्र दिखाई देते हैं। लगभग 1500 हैक्टेयर के एक बड़े भू-भाग में जंगलों को विकसित करना, जन सहभागिता बढ़ाना, सहकर्मियों का मनोबल बढ़ाये रखना; कभी गुस्से से और कभी मुस्कराते हुए अपने जंगल को संवारने का भागीरथ प्रयास जारी रखना ये फाॅरेस्टर कण्डारी की कुशल नेतृत्व और समर्पण से ही संभव हो पाया। जैसे ही आप चमोली कस्बे से आगे बढ़ते हैं आपको अलकनन्दा नदी के साथ जाती सड़क के किनारे रोड साईड प्लान्टेशन जिसमें से अधिकतर पेड़ों को वर्तमान में आॅल वैदर रोड के लिए काट दिया गया है दिखाई पड़ते हैं। साथ ही सड़क से नदी तट तक और कई गाँवों के ऊपर हरे झुरमुटों में जो भी नये जंगल के पैच दिखते हैं ये पिछले लगभग 30 वर्षों में विकसित हुए हैं।
अलकनन्दा रेंज में कण्डारी जी द्वारा सड़क के किनारे स्वरोपित कई पेड़ों को जब अभी हाल में आॅल वैदर रोड के लिए काटा जा रहा था तो टेलीफोन पर भावुक होते हुए उन्होंने मुझे बताया कि इनमें से कई एग्रोकार्पस, बकैंण, जामुन, सिल्वर ओक, बाॅटल ब्रश के पेड़़ 70-80 डायामीटर के हो गए थे। सामान्यतः 20 साल में एक स्वस्थ पेड़ की गोलाई 30 डायामीटर हो जाती है। अपने ही हाथों रोपे गए पेड़ों की जड़ों पर सराद सिंह कण्डारी उर्फ राजेन्द्र सिंह छपान का हथौड़ा लगवा रहे थे तो बताते हैं- मुझे लगा मैं अपने ही हाथ पैर कटवा रहा हूँ, यह कहते हुए वे फोन पर भावुक होकर रोने लगे। थोड़ी देर संभलने के बाद मुझसे बोलते हैं- जगत, मैं एक छकड़ा गाड़ी के रूप में अब अपना शरीर वापस समाज में ले आया हूँ और आज भी कुछ करना चाहता हूँ। जनपद चमोली के बिरही में जो शानदार अरण्यम पार्क बना है, उसकी नींव के हर पत्थर में उनका सहयोग रहा है। यह एक पहला उदाहरण है जहाँ बी.आर.ओ. द्वारा सड़क निर्माण की मक डम्पिंग से शानदार नर्सरी बनायी गयी है। पीपलकोटी से 9 किमी0 पहले बिरही और पीपलकोटी से 17 किमी0 आगे लंगसी तक 90 प्रतिशत सफल रोड साईड प्लान्टेशन का उदाहरण कण्डारी जी ने अपनी टीम के साथ स्थापित किया है। मेरे द्वारा ये पूछे जाने पर कि आपका सबसे प्रिय पेड़ कौन सा है? तो उन्होंने बताया बकैण और जामुन के बहुपयागी होने के साथ-साथ चिड़ियों के लिए अच्छा भोजन है।
कण्डारी जी को मिले पुरस्कारों की सूची –
सराद सिंह कण्डारी उनके वन विभाग ने उल्लेखनीय सेवा, आपदा प्रबन्धन, वनाग्नि नियंत्रण आदि हेतु सबसे पहले 20 जून 1985 में वन रक्षक के छमाही प्रशिक्षण दिया गया। जुलाई 1991 में उ0प्रदेश के पर्यटन सांस्कृतिक कार्य, खेलकूद एवं युवा कल्याण मंत्री श्री केदार ंिसंह फोनिया द्वारा पीपलकोटी के निकट डाक गाड़ी एक्सीडेन्ट में आपदा प्रबन्धन सहयोग हेतु पुरस्कृत किया गया। 26 जनवरी 2000 में आई0एफ0एस0 अजय कुमार द्वारा वन अग्नि शमन एवं नर्सरी कार्य हेतु सम्मान, अक्टूबर 2001 में डाॅ0 रमेश पोखरियाल द्वारा सम्मान, अलकनन्दा भूमि संरक्षण एवं वन प्रभाग में शानदार वृक्षारोपण हेतु आई0एफ0एस0 हेमन्त कुमार द्वारा सम्मान, मार्च 1999 में मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल वृत्त पौड़ी श्री बी0डी0 कांडपाल द्वारा रू0 250 का पुरस्कार, अगस्त 2015 में आई0एफ0एस0 श्रीकान्त चंदोला द्वारा सम्मान, 5 मार्च 2013 डाॅ0 जे0के0 शर्मा मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल वृत्त द्वारा रू0 375 का मानदेय, राज्य स्तर पर वनीकरण एवं भालू के उपचार हेतु आई0एफ0एस0 श्रीकान्त चंदोला द्वारा सम्मान। वानिकी के क्षेत्र में किये गए उत्कृष्ट कार्य एवं कर्तव्य परायणता हेतु मुख्य वन संरक्षक श्रीकान्त चंदोला द्वारा रू0 11,000 का पुरस्कार, मार्च 2016 में आई0एफ0एस0 जी0 सोनार वन संरक्षक गढ़वाल द्वारा रू0 230 मानदेय के अलावा डाॅ0 आर0बी0एस0 रावत के हाथों दो बार पुरस्कार प्राप्त किया है। पुरस्कारों की इस सूची में कई पुरस्कारों का वर्णन किया जाना छूट गया है।
जीवट के धनी सराद सिंह कण्डारी जनपद चमोली में वन विभाग में अपनी अलग छवि स्थापित करने में सफल रहे हैं। मैंने भी सामाजिक क्षेत्र में 1997 के बाद कार्य करते हुए कभी किसी भी वन विभाग के प्रतिनिधि को इतने समर्पण के साथ आज तक कार्य करते हुए नहीं देखा। वर्तमान में सराद सिंह कण्डारी पीपलकोटी बस अड्डे से 1 किमी0 पहले सेमलडाला में अपना होम स्टे चला रहे हैं । वो कहते हैं कि मुझे मेरे कार्यों में सबसे अधिक सहयोग मेरी पत्नी सुनीता देवी ने दिया। बेटी गरिमा अध्यापन का कार्य कर रही है, बड़ा बेटा जगमोहन जोशीमठ विकासखण्ड ग्राम विकास अधिकारी तथा छोटा बेटा विनय सिविल इंजीनियरिंग एवं बी0टेक0 करने के पश्चात् रोजगार की तलाश में है।
कुछ हफ्ते पहले सेवा निवृत्ति पाने पर उन्होंने अपने बाद पीपलकोटी रेंज में नियुक्त वन दरोगा नरेन्द्र सिंह नेगी से एक भावुक अनुरोध करते हुए कहा कि मैंने अपने पूरे जीवन में लगभग 1500 हैक्टयेर से अधिक का जो वन क्षेत्र विभाग एवं कर्मचारियों के सहयोग से स्थापित किया है कृपया उसे संजोकर रखें। वन क्षेत्राधिकारी जुगल किशोर चैहान, दुर्मी के ग्राम प्रधान और झींझी के पूर्व ग्राम प्रधान श्री लक्ष्मण ंिसंह विदाई समारोह में भावुक हो जाते हैं। हालांकि बहुत ही साधारण रूप से सेवा निवृत्ति के समारोह में सराद सिंह कण्डारी बहुत कुछ नहीं बोलते लेकिन उनके द्वारा स्थापित वन क्षेत्रों से उनके समर्पण और विभाग के प्रति कत्र्तव्यनिष्ठा के गीत अलकनन्दा नदी की घाटी में गुनगुनाये जाते रहेंगे।

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