अभी भी आग बहुत है सीने में- बछेंद्री पाल।
एक जून को टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हो रही हैं पर्वतारोही बछेंद्रीपाल
देहरादून। शैलेन्द्र सेमवाल
भारत की पहली महिला एवरेस्ट विजेता पद्मभूषण बचेंद्रीपाल जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) से सेवानिवृत्त होकर उत्तराखंड लौट रही हैं। वह एक जून को टीएसएएफ के निदेशक पद से सेवानिवृत्त होंगी। उसके बाद उनका अगला आशियाना उत्तराखंड का देहरादून होगा।

‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में बचेंद्रीपाल ने बताया कि उनका दिल और दिमाग उत्तराखंड में ही है। वह हमेशा से अपनी मातृभूमि लौटना चाहती थीं। लेकिन उन पर ऐसी जिम्मेदारी थी जिसे उन्हें पूरा करना था। करीब 35 साल की सेवा के बाद वह संतुष्ट भाव से अपने राज्य लौट रही हैं। टीएसएएफ में उनकी पारी शानदार रही। वहां उन्होंने दस एवरेस्ट विजेता दिए। 65 साल उम्र होने पर भी वह खुद को तरोताजा और ऊर्जा से भरपूर महसूस करती हैं। उत्तराखंड लौटकर वह अभी क्या करेंगी ये तय नहीं किया है। कहती हैं, उसके लिए सोचना पड़ेगा। चूंकि टीएसएएफ में वह साहसिक अभियान और महिला सशक्तीकरण पर काम कर रही थीं, इसलिए उत्तराखंड में भी इसी दिशा में काम करती रहेंगी। बचेंद्री कहती हैं कि वह साहब बन कर नहीं बैठ सकतीं, अभी भीतर बहुत आग है। इसीलिए घरवाले भी उनसे हैरान रहते हैं।
पहली बार कारपोरेट ने एडवेंचर स्पोर्ट्स को दिया सहारा
1984 में जब बचेंद्री ने एवरेस्ट फतह किया तो टाटा स्टील ने उन्हें जॉब ऑफर की। उन्हें स्पोर्ट्स असिस्टेंट बनाया गया। कंपनी के चेयरमैन और एमडी रूसी मोदी ने जब टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की घोषणा की तो बचेंद्री को उसका पूरा दायित्व सौंप दिया। बचेंद्री कहती हैं कि ये एक एवरेस्ट से दूसरे एवरेस्ट पर पहुंचने जैसा था। चूंकि जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी थी। वह उस लक्ष्य को पाने के लिए जूझ गईं। 35 साल बाद महसूस करती हैं कि उन्होंने जिम्मेदारी को कुशलता से पूरा किया। कई सारे अभियान का नेतृत्व किया। उनकी अगुवाई में 47 साल की प्रेमलता अग्रवाल, आदिवासी परिवार की बिनिता सोरेन, उत्तरकाशी, उड़ीसा से बेहद गरीब परिवार की पूनम राणा व स्वर्णलता दलाई, अरुणिमा सिन्हा एवरेस्ट पर चढ़ीं। टीएसएएफ को उन्होंने कुल 10 एवरेस्ट विजेता दिए।
हेमंत गुप्ता बनेंगे नए निदेशक बचेंद्री की जगह टीएसएएफ के नए निदेशक आईआईटी मुबंई के हेमंत गुप्ता होंगे। वह खुद भी 2017 में एवरेस्ट फतह कर चुके हैं। बचेंद्री को हेमंत ने बेहद प्रभावित किया। जब उत्तराखंड में आपदा आई तो हेमंत सिला, पिलंग, भटवाड़ी के दूर दराज इलाकों में उनके साथ पैदल गए और राहत के काम किए। डोडीताल, उत्तरकाशी में मिशन गंगा, वेस्ट मैनेजमेंट, प्रदूषण नियंत्रण के लिए उल्लेखनीय काम किए। वह टाटा स्टील में अधिकारी हैं और उन्होंने स्वेच्छा से टीएसएएफ को चुना।
राजनीति नहीं है खून में बचेंद्रीपाल का कहना है कि रिटायर होकर लोग राजनीति में कॅरियर तलाशते हैं। उनके मन में ऐसी कोई इच्छा नहीं है। राजनीति न तो उनके बस की है न ही खून में। 1993 में एक बड़ी पार्टी ने उन्हें राजनीति में आने का ऑफर दिया था। तब राज्य के एक बड़े मंत्री उत्तरकाशी के नाकुरी गांव वाले घर में उन्हें मनाने के लिए आए भी, पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया। अब भी इसकी कोई संभावना नहीं है। उन्हें राजनीति की चकाचौंध से पहाड़ का शांत कोना ही अच्छा लगता है।
एवरेस्ट के ट्रैफिक जाम से बचेंद्री दुखी बचेंद्री एवरेस्ट की मौजूदा ट्रैफिक जाम की स्थिति से बेहद दुखी हैं। उनके अनुसार जब 1984 में उन्होंने एवरेस्ट फतह किया था तब वह चुनौतीपूर्ण अभियान था। संसाधन नहीं थे। पर्वतारोही पूरी तैयारी और अनुभव लेकर ही एवरेस्ट पर चढ़ने की सोचता था। लेकिन अब एवरेस्ट चढ़ना स्टेटस सिम्बल हो चुका है। रिकॉर्ड बनाने की होड़ ने ही एवरेस्ट जैसी जगहों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा की है। नेपाल, चीन की सरकार को एवरेस्ट को इस स्थिति से बचाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। 1993 में जिस इंडो-नेपाली अभियान दल का उन्होंने नेतृत्व किया, वह स्वेच्छा से अपने साथ पांच सौ किलो गारबेज वापस लेकर आया था। अब तो वहां ऐसा करना अनिवार्य हो गया है। ऐसी भावना एवरेस्ट चढ़ने वालों को रखनी होगी। तभी सागरमाथा का माथा ऊंचा रह सकता है।
साभार- हिंदुस्तान