अफगानिस्तान से लाया गया दून घाटी का बासमती । बासमती की जगह उग रही है सीमेंट कंक्रीट की पौध।
अफगानिस्तान से लाया गया दून घाटी का बासमती । बासमती की जगह उग रही है सीमेंट कंक्रीट की पौध।
(मनोज इष्टवाल)
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद राजधानी बने देहरादून शहर को हाई टेक शहर बनाने वाले इन नेताओं की शह में पलने वाले भूमाफियाओं ने अरबों रुपये यहाँ सीमेंट कंक्रीट की पौध लगाकर कमा लिए हैं वहीँ यह शहर पर्यावरणीय चिंताओं से जूझता हुआ अपनी अस्मिता खो रहा है।
दून घाटी की बासमती व लींची का निर्यात विश्व के जाने कितने देशों में होता था। यही नहीं देश के किसी भी कोने से आया पर्यटक दून से बासमती खरीदकर न ले जाये ऐसा हो ही नहीं सकता था। आज दून के पहले चाय बागान फिर बासमती घाटी और अब लींची बागान पर भूमाफियों की कुदृष्टि पड़ गयी है। यानि पूरे शहर को ऑक्सीजन शुद्ध मानसून देने वाले ये तीन हरितक्रांति के विभिन्न अंग दून घाटी से तेजी से घट रहे हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द खंडूरी ने जब इस पर अंकुश् लगाया तब ये सभी माफिया एकजुट हुए और परिणाम यह निकला क़ि उन्ही के पार्टी के अंदरूनी नेताओं ने एक कुशल नेता को हरवाकर बागडोर कांग्रेस के हाथों दे दी जिसकी सरकार ने आते हो सबसे पहले उसने भूमाफियों के लिए ही दरवाजा खोला आज हालात सबके सामने हैं। देहरादून के कैसरीन जमीन ही नहीं नदी नाले सब बिक गए या कब्जा कर लिए गए हैं।
बासमती चावल का अफगानिस्तान से देहरादून आने का सफर भी उतना ही विषाद है जितना उसका घाटी से विदाई का सफर है। सन 1842 में अंग्रेज सरकार अफगानिस्तान के बादशाह अमीर मोहम्मद को जब राजनीतिज्ञ बंदी बनाकर देहरादून लायी थी तब वह बासमती चावल का बीज साथ लेकर आये थे। इसे दून घाटी के सेवला कला क्षेत्र के बेहतरीन जलवायु में बोया गया जहां इसके अप्रत्याक्षित रिजल्ट दिखने को मिले पूरी घाटी बासमती चावल की खुशबु से महक उठी।
इसके पश्चात माजरा,सेवला खुर्द, पिट्ठू वाला, ब्राहमण वाला,निरंजनपुर, कारगी सहित पूरी घाटी में बासमती महकने लगी जिसका निर्यात विदेशों तक होने लगा और यह दो सदी तक देश की आय का प्रमुख जरिया बना रहा।
कहा जाता है कि अवध प्रांत के तत्कालीन गवर्नर सेवला कला राइस मिल देखने व बासमती कैसे उगाई जाती है उसका अनुभव लेने दून घाटी आये।
आज दून बासमती के नाम से कई बोरों पर मार्का देखकर हंसी छूट जाती है क्योंकि वह बासमती कहाँ उगाई जा रही है इसका शोध कठिन है क्योंकि उसकी जगह तो भूमाफियाओं के रेत बजरी सीमेंट कंक्रीट से निर्मित विशालकाय पहाड़ उग आए हैं जिन्हें हम इमारत कहते हैं।