अपर मुख्य सचिव हैं वन पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की नाराजगी की वजह!

(मनोज इष्टवाल)

ये तो उत्तराखंड की तमाम जनता प्रदेश के विधायकों व विभागीय मंत्रियों व उनके नीचे के कार्यरत स्टाफ के माध्यम से पूर्व से ही जानती है कि प्रदेश के विकास सम्बन्धी ज्यादात्तर फाइल मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव के कार्यालय में धूल फांकती रहती हैं लेकिन कभी किसी ने यह साहस नहीं दिखाया कि कोई मंत्री संत्री या विधायक इस बात का खुला विरोध कर सके! प्रदेश के वन एवं पर्यावरण व श्रम मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत जैसा व्यक्ति भी इतने लम्बे समय तक कसमसाहट में यह सब झेल रहे थे शायद इसलिए कि उन पर फिर यह आरोप लगना शुरू न हो जाय कि वह फिर कहीं पार्टी बदलने के चक्कर में हैं लेकिन यह सच कोई नहीं जानता कि जनता को बेहद करीब से जानने वाले डॉ. हरक सिंह रावत विवादों में रहने के बाद भी हर बार चुनाव इसीलिए जीत जाते हैं क्योंकि जनता जानती है कि यह राजनेताप्रदेश की विकास योजनाओं के माध्यम से जो रोजगार हर बार जनता को मुहैय्या करवाने में सक्षम रहा है वह हर कोई राजनेता नहीं कर पाता!

विगत दिनों के लेटर बम ने अब राजनीतिक हलकों में सरगर्मियां फिर बढ़ा दी हैं क्योंकि डॉ. हरक सिंह रावत ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वे फक्कड़ व्यक्ति हैं जिस कार्य पर आगे बढ़ जाते हैं उसे छोड़ते नहीं हैं चाहे कुर्सी क्यों न चली जाय! यह एक ऐसी चेतावनी है जो यकीनन वर्तमान सरकार के लिए संकट पैदा कर सकती है क्योंकि डॉ. हरक सिंह रावत जैसी नाराजगी मंत्री मंडल ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के दर्जनों विधायकों के अंदर भी भरी है! उनकी नाराजगी मुख्यमंत्री से कम और उनके अपर मुख्य सचिव से ज्यादा दिखाई देती है जो मंत्री विधायकों को तबज्जो देना तो दूर उनके विकास कार्यों की फाइलों को धूल फंकवाने में ज्यादा विश्वास रखता है!

वन पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने तो सीधे – सीधे मुख्यमंत्री के नजदीकी व खासमख़ास कहे जाने वाले अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने लाल ढांग -चिल्लरखाल वाली सड़क निर्माण पर मुख्यमंत्री तक को गुमराह किया है! उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि यह सडक निर्माण का कार्य लोक निर्माण विभाग ने नहीं बल्कि उन्हीं के वन विभाग द्वारा अपर मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव के मौखिक आदेशों पर जोर जबरदस्ती बंद करने का दबाब बनाया जा रहा है! वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत का कहना है कि विगत 30 अप्रैल को इस मोटर मार्ग का निर्माण कार्य एनजीटी का हवाला देकर रोक दिया गया जिसकी वीडिओग्राफी तक करवाई गयी है जबकि 3 किमी. पक्की सडक कई पुल सहित साढ़े चार करोड़ के निर्माण कार्य जारी हैं!

ज्ञात हो कि यह सडक गढ़वाल कुमाऊं को जोड़ने वाली एक ऐसी महत्वकांक्षी परियोजना कही जा सकती है जो यात्रियों के सफर को कम करते हुए कई किमी. का सफर कम करेगा ! डॉ. हरक सिंह रावत का आरोप है कि बेवजह एनजीटी का हवाला देकर इस निर्माण कार्य को रुकवाने की जो कोशिश इन अधिकारियों के द्वारा हुई है वह मुख्यमंत्री को जानबूझकर अँधेरे में रखने के लिए किया गया कृत्य है जबकि एनजीटी ने तो अभी तक के निर्माण कार्य की रिपोर्ट मांगी है जिसकी विधिवत वीडियोग्राफी की जा रही है! उन्होंने प्रश्न उठाया है कि साढे चार करोड़ की धनराशी जोकि प्रदेश की गरीब जनता की गाढ़ी कमाई का हिस्सा है उसे यूँ बहाने बनाकर अपनी ठसक बरकरार रखने के लिए ये अधिकारी बर्बाद करना चाहते हैं आखिर उसकी जबाबदेहि किसकी है?

वहीँ प्रदेश के मुख्यमंत्री के संज्ञान में जैसे ही यह बात आई कि बिना विभागीय मंत्री की संस्तुति के ही कार्मिक विभाग उनसे फाइल पर संस्तुति करवाकर ले गया और वन विभाग के विभागाध्यक्ष को विदेश यात्रा पर भेज दिया तो उन्होंने इस पर फ़ौरन जांच बिठा दी है ! जिसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि ऐसी कई फाइल कार्मिक विभाग या अन्य मुख्यमंत्री को अँधेरे में रखकर संस्तुति करवा लेते हैं ! सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री ने सख्त निर्देश जारी किये हैं कि भविष्य में ऐसी कोई भी कार्यवाही नहीं हो इस तरह की स्थिति पैदा कर दे!

बहरहाल ऐसे प्रकरण में सीधा -सीधा सा लगता है कि वन मंत्री व मुख्यमंत्री को अफसरशाही अपने फायदे के लिए गुमराह करती रही है जिसका संज्ञान लेते हुए अब मुख्यमंत्री ने भी सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है जो जरुरी कदम कहा जा सकता है!

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