अपनों से दूर होती झुडकी या भेड़ बकरी पालन?

अपनों से दूर होती झुडकी या गायब होता भेड़ बकरी पालन !
(मनोज इष्टवाल)
राज्य निर्माण के बाद ये तो नहीं कहूँगा कि विकास नहीं हुआ है लेकिन इतना जरुर कहूंगा कि स्वरोजगार के कई मानक धीरे धीरे समाप्ति पर है. उत्तराखंड के हिमालयी जिलों में हस्तशिल्प व ऊनि वस्त्र ऐसे गायब हुए जैसे गद्दे के सर से सींग.

ज्यादा दूर की बात क्या करें देहरादून जनपद के जौनसार बावर क्षेत्र में ही बर्ष 2000 में चोडा, जंगेल सहित खारचे इत्यादि ऊनि वस्त्र बहुतायत मात्रा में पहनने व देखने को मिल जाते थे आज बमुश्किल यह किसी किसी गॉव में बिरले लोगों के पास ही होंगे.
उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद हिमालयी क्षेत्रों का बकरी व्यवसाय सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. अकेले उत्तरकाशी के सर-बडियार, पर्वत क्षेत्र से आराकोट बंगाण तक का जिस क्षेत्र की आर्थिकी विगत 10 बर्ष पूर्व भेड़-बकरी पालन पर थी व वहां के भेडालों (बक्रवाल) के पास हजारों हजार बकरियां व भेड़ें हुआ करती थी अब औसतन 40 से 50 प्रतिशत भेडाल व भेड़ बकरियां कम हुई हैं. जो कि एक चिंताजनक बात है.

आराकोट के चाईशिल पर्यटक स्थल के टूर पर आई हमारी टीम जब यहाँ के विभिन्न गॉव का दौरा कर रही थी तब मुझे लगा कि यहाँ भी आम लडकियां ऊनि झुड्की पहनती होंगी क्योंकि यह क्षेत्र शीतकाल में बेहद ठंडा होता है.
बलावट गॉव बंगाण में जब मैंने इस ऊनि वस्त्र (ऊनि कोट) के बारे में जानकारी लेनी चाही तो पहले यहाँ की युवतियों को समझ नहीं आया कि आखिर मैं कैसे ऊनि कोट की बात कर रहा हूँ लेकिन जब मैंने उन्हें ओसला गंगाड (हर की दून) ट्रेक के समय वहां की युवतियों के फोटो दिखाए तब राखी चौहान ने कहा – सर मेरे पास है झुडकी !
मुझे आश्चर्य हुआ कि सिर्फ एक लडकी के पास झुड्की दिखने को मिली. मैने भी झट से फोटो खींचवा ली. राखी बताती है कि -सर पहले हमारे गॉव में हर एक के पास झुडकी हुआ करती थी लेकिन अब झुडकी के लिए आपको ओसला गंगाड क्षेत्र ही जाना होगा क्योंकि अब यहाँ भेड़ बकरी पालना बंद हो गया है इसलिए ऊँन की कमी के कारण झुड्की कौन बनाए. या फिर आपको ऊन के लिए हिमाचल रोहडू जाना पडेगा तब जाकर झुडकी सिलवानी पड़ेगी.
बात पते की थी और चटपटी भी ! लेकिन भेड़ बकरी पालन व्यवसाय ने न सिर्फ अपना सफाया किया बल्कि खेतों में पड़ने वाली वह बेशकीमती बकरोल खाद (भेड़ बकरी के मळ मूत्र) का भी सफाया हो गया . अब अन्न की जगह सिर्फ सेब के बाग़-बगीचे ही इस इलाके की समृधि का हिस्सा रह गया है.

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