अपने लोक समाज की कीमती धरोहरों से दूर होते जौनसारी समाज का पौराणिक पहनावा!
अपने लोक समाज की कीमती धरोहरों से दूर होते जौनसारी समाज का पौराणिक पहनावा!
(मनोज इष्टवाल)
जौनसार बावर क्षेत्र की जब भी बात होती है तब तमसा और यमुना नदी का जिक्र न हो तो सब अधूरा लगता है क्योंकि तमसा नदी आर-पार या यमुना नदी आर पार भी इस जनजातीय क्षेत्र ने अपनी लोक संस्कृति की घमक व लोक समाज की धमक बनाए हुए है, लेकिन तेजी से आ रहे समाजिक बदलाव ने इस क्षेत्र के कई लोक महत्व के तीज त्यौहार, लोक समाज में प्रचलित कई अति महत्वपूर्ण आयामों लो बदलकर रख दिया है! यही नहीं इस समाज को हम सबसे अलग थलग बनाए रखने वाली यहाँ के परिधान व गहने भी अब तेजी से लोप होते जा रहे हैं! विगत 10 बर्षों में इस समाज ने जो करवट बदली वह लोक समाज में प्रचलित इसकी यह बिशेष रंगत रही है! यह जनजातीय क्षेत्र आभूषण पहनने में सोने का ज्यादा प्रयोग करता है, यहां चांदी का प्रयोग निम्न समाज के लोगों में यदाकदा दिखाई देता है. यहाँ का पहनावा बेहद सरल एवं आकर्षक है, पुरुषों के पहनावे में ज्यादातर ऊनि कुरता पैजामा प्रचलन में था साथ में बंद गले का स्वनिर्मित बकरे या भेड की बालों का कोट, लेकिन वर्तमान समाज की देखा-देखी से इसके पहनावे में भी ब्यापक परिवर्तन आ गया है, सिर में पहनी जाने वाली गोल टोपी भी गायब हो गयी है! पूर्व में यहाँ की वेशभूषा पहना ब्यक्ति या महिला जब देहरादून या विकासनगर में आता था तो उसकी बड़े आराम से पहचान हो जाती थी लेकिन वर्तमान में आये पहनावे में परिवर्तन से यहाँ का परिवेश भी बदल चुका है.
शीतऋतु में ऊनि वस्त्रों को पहना जाता है, जिसमें पुरुष समाज पैजामा (झगेला), लम्बा कोट (चोडा), टोपी (डिगुवा) पहनते हैं. चोडा (ऊनि कुर्ता) और जंगेल ( लम्बा ऊनि पैजामा) जिसकी लम्बाई लगभग १६ फिट तक होती है भी पहना जाता है. इस पैजामे की खाशियत यह है कि यह कमर में ढीला तथा पैरी में संकरा होता है एवं यह चुन्नट डालकर पहना जाता है. इस पैजामे में यहाँ के स्थानीय लोग थोऊडा नृत्य भी करते हैं. बकरे की खाल से बनाये जाने वाले जूते जिसे “खुर्सा” कहते हैं वह भी यहाँ के पहनावे में दूर दराज के गॉव में ही सिमट कर रहा गया है अब यहाँ के पुरुष ज्यादातर शहर से लाये गए जूतों को पहना करते हैं. . पूर्व में यहाँ के पुरुष भी हाथों एवं कानों में आभूषण धारण किया करते थे.
जौनसार-बावर की महिलाओं का पहनावा भी पुरुषों की भांति सहज और सरल होता है जिसमें वे बेहद आकर्षक दिखाई देती हैं. ये घाघरा कुर्ती पहनती हैं. महिलाओं की घाघरे की माप ७ से ९ मीटर कपडा लगा होने से होती है जिसपर चुनटें (लावण) जितनी अधिक हों वह उतना ही आकर्षक हो जाता है. घाघरे के ऊपर पहनी जाने वाली चोली (कुर्ती) भी कालर वाली होती है जिसमें स्थानीय टेलर बड़ी खूबसूरती से कपडे की चुन्नट(झालर) फूलनुमा निकाल कर उसे आकर्षक बनाने का हर संभव प्रयास करता है. सिर में ऊनि कपडे का या फिर रेशमी व सूती ढान्टू पहना जाता है. रुकाल या ऊनि कोट भी महिलाओं के पहनावे में सम्मिलित है. यहाँ की महिलायें सिर पर टालो धारण करती हैं. जाड़े में ऊनि ब्लाउज और ऊनि जैकेट का भी पहनावा यहाँ की महिलाओं के पहनावे में सम्मिलित है. समुदाय की बड़ी बुजुर्ग महिलाओं के आभूषण यहाँ बहुतायत मात्र में पाए जाते है जिन्हें धागुले, कंडी, झुमके, बाली, खगडी, मुर्कियाँ, बिच्छु,बुलाक, तिमौनिया, चूड़ियाँ, सूच, उत्तरायी, पोलियां, फुल्ली, नथोली, इत्यादि नाम से पुकारा जाता है. गले में पहनी जाने वाली माला को स्थानीय भाषा में कान्डूडी कहा जाता है साथ ही दस लड़ियों की “दोसर” माला खूबसूरती में चार चाँद लगाने का काम करती है. हाथ में चांदी या सोने के कड़े को कांगू स्थानीय भाषा में नाम दिया गया है! मान्य बोलचाल की भाषा में गहनों को घईणा नाम से पुकारा पुकारा जाता है. अब इन जेवरों को कहाँ कहाँ पहना जाता है उसको क्रमानुसार आपको बताते हैं- बुलाक/नथ/लोंग/फुल्ली (नाक में), उत्तरेण/उत्तरायी (सिर में), कांथी या कांठी (चांदी के सिक्कों की माला), झुमके/बलि/मुरकी/लाविया/तुंगल (कानों में ), खान्गुली/(चांदी की गोल छड़ी वाली माला)/तिमेनिया(छोटे–छोटे मोतियों की माला)/डोरसा( अनेक लड़ियों की माला)/दोस्रू(दस लड़ियों का हार)/ सूच /कांडूडी या कान्कुड़ी ( गले की माला), चर्र(कंगना) कान्गुड़े या धागुले (हाथ के बाजुओं व हाथ में पहने जाने वाला जेवर जिसे पुरुष वर्ग भी धारण करता है), पोल्यां या पोली (पैर के बिच्छुवे ) इत्यादि हैं. जौनसार बावर में भेड़ बकरी पालन भी मुख्य ब्यवसाय है, जनजाति में एक त्यौहार जिसे नुणाई के नाम से जाना जाता है, भेड़ बकरियों पर ही आधारित है जिनका वर्णन आपको आगे पड़ने को मिलेगा. फिलहाल हम इस क्षेत्र में प्रचलित ऊनि वस्त्रों के बारे में बात करें तो यहाँ कामती (ऊनि रजाई), काम्बड (कम्बल),डेहउड (छोटी कम्बल), पौन्खी (शाल),जंगेल (पैजामा), चोडा (