अपने खेत खोदता उत्तराखण्ड का पहला मंत्री। पैतृक गांव में अवकाश के दिनों रहना पसंद करते है डॉ रावत।

(मनोज इष्टवाल)

यह दर्शनीय है व सुखद भी..! जिस राजनेता ने सरकारें पलट दी हों। जिस राजनेता की एकड़ों जमीन, मेडिकल कॉलेज चल रहे हों व जिस नेता के पास मूलधन भी शपथ पत्र के अनुसार काफी हो, उसका अपनी पैतृक जमीन से ऐसा मोह उन सब उत्तराखंड वासियों के लिए एक सबक है जो 100-150 गज से लेकर 5बिस्से की जमीन में शहर की आबोहवा में खुद को जाने आसमान जैसा विशाल साम्राज्य का आदमी क्यों समझने लगता है।

अपने पैतृक गांव ग्राम-गहड़ की पानी में परिश्रम के बीज रोपते वनमंत्री डॉ हरक सिंह रावत।

आजकल जहां एक ओर कोरोना की महामारी में ज्यादात्तर मंत्री विधायक अपने क्षेत्रों से नदारद हैं वहीं यह कर्मयोगी अपनी विधान सभा की जनता के बीच मास्क हाथ में थामे कोरोना संक्रमण से रोकथाम की अपील करते नजर आते हैं।

हाल ही में कई दिनों से क्षेत्रीय भ्रमण के बाद वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत की अपने गांव में योगा करते एक पोस्ट सोशल साइट पर वायरल हुई तो उसकी की भी खबर बन गयी लेकिन यह खबर इस समय सबसे महत्वपूर्ण है जब कोरोना महामारी से जूझते विश्व भर के महानगर हाल-बेहाल व परेशान हैं। ऐसे में उत्तराखंड से प्लावित हजारों-हजार लोग गांव लौट रहे हैं जिनके मनोमस्तिष्क पर यह विचार कौंध रहा है कि ऐसी महामारी से दो जून की शुकुन की रोटी का जुगाड़ गांव में ही क्यों न किया जाय। यह आत्ममंथन अभी इसलिए जारी है क्योंकि कोरोना के भय ने सबको झकझोर रखा है। जो महानगरों में फंसे हैं उनका बोरिया बिस्तर लौटने को तैयार है। जिनके मकान महानगरों में हैं वे भी दुविधा में पड़े सोच रहे हैं कि कुंडी जाऊं या पाबौं जाऊं।

ऐसे में वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत का यह फोटो शायद उन्हें मजबूती दे जो दोराहे पर खड़े ऐसा चिंतन या आत्ममंथन कर रहे हैं। यहां यह भी हो सकता है कि हम में से विभिन्न विचारधाराओं के लोग या राजनेता उनके इस फोटो पर चुटकी या चुस्की लेकर इस निखास राजनीतिक ड्रामा करार दे व कहे कि यह सिर्फ पब्लिसिटी स्टंट है तो मैं उनके संज्ञान में यह बात डाल दूँ कि डॉ हरक सिंह रावत ही उत्तराखण्ड के एकमात्र ऐसे मंत्री हैं जो अपने गांव से लगातार सम्बन्ध बनाये हुए हैं व विगत महीनों अपने गांव में पूजा करने के बाद यह इच्छा जाहिर कर चुके हैं कि वे अब अपने गांव लौटना चाहते हैं।

इस दौरान ऐसे कई उदाहरण सामने आ रहे हैं जब महानगरों में फंसे युवा यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि एक बार यहां से निकल जाते तो लौटने का नाम नहीं लेते। लेकिन यह इतना सम्भव नहीं है जितना ये लोग सोच रहे हैं। बिना रोजी रोटी के गांव में संघर्ष करना सरल हो सकता है लेकिन सबसे कठिन अगर कुछ हो रहा है तो वह है हमारी बहन बेटियाँ व माताएं। क्योंकि कोई भी किसी भी सूरत में पहाड़ की पहाड़ जैसी दशा से जूझने को तैयार नहीं है और न ही कोई गरीब से गरीब अपनी बेटी की शादी पहाड़ में करना चाह रहा है।

सरकार ने पलायन को लेकर कई कदम उठाए हैं लेकिन कोई भी इसलिए कारगर साबित नहीं हुए हैं क्योंकि प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर विधायक तक और तो और पार्षद प्रधान तक यह साहस नहीं दिखा पा रहा है जैसा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी दिखाते आये हैं व लोगों के लिए आइकन बन गए। प्रधानमंत्री ने हाथ में झाड़ू पकड़ा तो देश की गंदी सड़कें मोहल्ले गन्दगी मुक्त हो गए। प्रधानमंत्री ने जितने भी कार्य जनता के हित में अग्रसारित किये वे उन्होंने पहले स्वयं पर इम्प्लीमेंट किये और सभी सफल भी हुए। वाराणसी में चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा सफाईकर्मियों के पैर धोना तब लोगों ने चुनावी स्टंट बताया लेकिन आज आप खुद महसूस कीजिये कि सफाई कर्मियों के प्रति आपकी विचारधारा में कितना बदलाव आया है। उदाहरण पंजाब का ही देख लीजिए जहां एक मोहल्ले के लोगों ने सफाईकर्मी के ऊपर फूल बरसाए व रुपयों के हार गले में डाले।
मेरा मानना है कि आज जनता सिर्फ नारों व झूठे वायदों पर विश्वास नहीं करती। अगर विश्वास करती तो कांग्रेस जैसा बड़ा दल मटियामेट नहीं होता। आज वीवीआईपी कल्चर की राजनीति नहीं बल्कि जमीनी राजनीति का युग है। ऐसे में डॉ हरक सिंह रावत बिना कुछ बोले वह सब कुछ कर गए जो जनता के दिलों में राज करने के लिए काफी है।

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