अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मनाया योग दिवस!
देहरादून 23 जून 2019 (हि.डिस्कवर)।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के मुख्य सेवाकेन्द्र, सुभाष नगर देहरादून में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।
इस अवसर पर आदरणीया राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू बहन जी (सबज़ोनल हैड – ब्रह्माकुमारीज़, देहरादून) ने कहा कि जिस प्रकार शारीरिक योग या प्राणायाम में हमारे शरीर का संबंध प्रकृति के साथ जोड़ा जाता है, जिससे शरीर की सारी कमियाँ ख़त्म हो जाती हैं और शरीर में ऊर्जा आती है ; उसी प्रकार राजयोग साधना में हम आत्मा का संबंध परमात्मा के साथ जोड़ते हैं जो एक आध्यात्मिक ऊर्जा का स्त्रोत है। ऐसा करने से हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा की कमी दूर हो जाती है।
राजयोग साधना में हम अपने को शरीर नहीं मानकर, शरीर को चलाने वाली आध्यात्मिक ऊर्जा मानते हैं, जिसे ही आत्मा कहा जाता है। आत्मा में ही विकार – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के आने से आत्मा की आध्यात्मिक ऊर्जा कम हो जाती है। जिसका ही परिणाम है कि आज हम भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जा रहे हैं। जल्दी-जल्दी गुस्सा आ जाना, जीवघात कर लेना, तुरंत प्रतिक्रिया कर देना, सब कुछ होते भी असंतुष्ट रहना; ये सब इस बात के ही प्रमाण हैं।
राजयोग साधना में हम आत्माएं, परमात्मा जो कि आध्यात्मिक ऊर्जा का उद्गम है, उनके साथ अपना संबंध स्थापित करते हैं और उन पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं। ध्यान केंद्रित करते ही परमात्म शक्तियाँ आत्मा के अंदर समाहित होने लगती हैं। हम से खुशी, शांति और प्यार की तरंगें सारी दुनिया में फैलने लगती हैं। राजयोग साधना एक तरह से ऊर्जित होने की प्रक्रिया है।
जब हम आत्मिक स्थिति में स्थित हो कर परमपिता परमात्मा से जुड़ जाते हैं, तो हम भावनात्मक और मानसिक रूप से सशक्त बन जाते हैं। ऐसा करने से हमारा अपने ऊपर पूरा नियंत्रण आ जाता है। यह हमें हर बात में सकारात्मक सोचने की शक्ति भी देता है, और साथ ही साथ हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ाता है।
आदरणीय भ्राता योगाचार्य विपिन जोशी जी ने सभी को प्रेरणा दी कि हमारा व्यवहार ही हमारा सच्चा परिचय है। ज्ञान को व्यवहार में लायें। रचनात्मकता होनी चाहिये। लचीले बनें। सहयोग की क्षमता न होने पर भी सहयोग की भावना होनी चाहिये। योग को अपने जीवन चर्या का अंग बनायें। सुप्त नहीं, चेतन रहना भी योग है।
आदरणीय भ्राता योगाचार्य सुबोध नेगी जी ने ओम् शांति का अर्थ समझाते हुए कहा कि ओम् अर्थात परम सत्ता से जुड़कर स्वयं में शांति को धारण कर सर्व का कल्याणकारी बन जाना। संस्कृत भाषा के ‘युज‘ धातु से बने ‘योग‘ शब्द का अर्थ ही है ‘जुड़ना‘। अष्टांग योग के यम-नियम-आसन-प्राणायाम-प्रत्याहार एकाग्रता को बढ़ाते हैं।
आदरणीय भ्राता श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव ने समाज को सचेत करते हुये कहा कि योग को सही अर्थों में लेना होगा, मात्र योगा, व्यायाम नहीं। बल्कि तन को मन से, मन को आत्मा से, आत्मा को परमात्मा से जोड़ना योग है। विचार शून्यता के बजाय विचार का रूपांतरण हो। विचारों को दबाने के बजाय उनका परिवर्तन हो। ज्ञान-योग-धारणा-सेवा, सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता द्वारा सिखाये गये राजयोग का मर्म है। व्यवहारिक योग में तथ्य को अपनाने या तिरस्कृत करने से पहले उसे जाँचना होता है।
ब्रह्माकुमारी शालू बहनजी ने राजयोग को परिभाषित किया ‘विचारों का प्रबंधन‘ जो श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण कर जीवन जीने की नई और सहज कला सिखाता है, जिससे हम कर्मेंद्रियजीत बन जाते हैं। राजयोग औषधि के समान आत्मा के विकारों का इलाज करता है। कवच के समान बुराइयों से रक्षा करता है। राजयोग अनेक गुणों और शक्तियों को प्राप्त करने का साधन है। राजयोग ईश्वर से परिचय-सहित प्रेम है।
ब्रह्माकुमारी शिफाली बहनजी ने राजयोगिनी मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती जी के गुण व सामाजिक योगदान बताते हुए कहा कि वे सदा परमात्म लगन में मगन रहने वाली, मृदु-स्वभावी, मित-मृदु भाषी, सदा विश्व कल्याणकारी, सर्व के प्रति शुभ कामना – शुभ भावना रखने वाली, पवित्रता की मूरत थी। ज्ञान-योग-धारणा-सेवा में नम्बर वन बनी। सभी वत्सों की पालना – प्यार की निमित्त बनी सो जगत की माँ बनी। उनकी प्रेरणा और शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाकर ही हमारी ओर से उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
ब्रह्माकुमारी नीलम बहनजी ने उपस्थित जनसमूह को राजयोग मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा परमात्म शक्ति, प्रेम व शांति का अनुभव कराया। ब्रह्माकुमार सुशील भाई ने मंच संचालन किया।