अधूरी ‘आशा’ के 'पूरे' सौ दिन…!
अधूरी ‘आशा’ के ‘पूरे’ सौ दिन…!
(वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की कलम से)
त्रिवेंद्र सरकार आज सौ दिन पूरे कर रही है। इस मौके पर पूरी सरकार जश्न में है। गिनाने के लिए सरकार चाहे कितनी ही उपलब्धियां गिना ले, लेकिन सही मायनों में जश्न के लायक कुछ भी नहीं है। यह सच है कि तस्वीर बदलने के लिए सौ दिन का वक्त कुछ भी नहीं होता, लेकिन उतना ही सच यह भी है कि एक ठहराव खत्म करने और बदलाव के संकेत देने के लिए तो यह अवधि कम नहीं होती? 100 दिन का वक्त इतना सुनिश्चित करने के लिए तो कम नहीं होता कि किसी महिला को सड़क पर प्रसव के लिए मजबूर न होना पड़े? किसी महिला को इलाज के अभाव में दम न तोड़ना पड़े? ठीक सौ दिन पहले जब त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री चुने गए तो उनकी छोटी बिटिया श्रीजा ने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके पिता सबसे पहले पहाड़ी क्षेत्रों में बदहाल हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारेंगे। यह सुनिश्चित कराएंगे कि इलाज के अभाव में किसी महिला को भटकना न पड़े। कानून की छात्रा श्रीजा की यह संवेदनशीलता वाकई काबिलेतारीफ है। उसकी संजीदगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है आए दिन इलाज न मिलने से गर्भवती महिलाओं के दम तोड़ने, सड़क पर प्रसव के लिए मजबूर होने की खबरें उसको विचलित करती हैं। दरअसल जो उम्मीदें श्रीजा को अपने मुख्यमंत्री पिता से हैं, प्रदेश की हर बिटिया की भी उनसे कमोबेश ऐसी ही उम्मीदें हैं। 100 दिनों में जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने के सरकार लाख दावे कर ले, दावे के समर्थन में लाख आंकड़े पेश कर ले, मगर सच से हर कोई वाकिफ है। खुद सरकार भी, सरकार के मुखिया भी और जनता भी। और सच यही है कि इन सौ दिनों में मुख्यमंत्री अपनी बिटिया की छोटी उम्मीद भी पूरी नहीं कर पाए हैं। बीते 100 दिनों में प्रदेश भर से ऐसी दर्जनभर के करीब खबरें सामने आ चुकी हैं जब प्रसवपीड़ा से कराह रही महिलाओं को सड़क पर बच्चा जनने को मजबूर होना पड़ा। चकराता ब्लाक के दूरस्थ इलाके त्यूणी से लेकर उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और यहां तक कि सत्ता के केंद्र देहरादून तक में इस तरह की शर्मसार कर देने वाली घटनाएं इन सौ दिनों में देखने सुनने को मिली हैं। सवाल यह है कि श्रीजा की अपने मुख्यमंत्री पिता से जो उम्मीद बांधी, क्या वह इतनी बड़ी उम्मीद थी जिसे 100 दिन में पूरा किया जाना असंभव है। जब 100 दिन में मुख्यमंत्री अपनी बिटिया की एक उम्मीद पूरी नहीं कर सकते हैं, तो फिर सरकार द्वारा उपलब्धियों के तौर पर गढ़ी जाने वाली हर कहानी बेमानी है। इन सौ दिनें में विधानसभा के भीतर यह खुलासा तक हुआ कि ‘आपातकालीन 108 सेवा’ दिन-प्रतिदिन लापरवाह होती जा रही है। इसके संचालन में घोटाला है। हैरानी की बात यह है कि ये वही 108 सेवा है, जिसमें होने वाले प्रसवों को सरकार अपनी बड़ी उपलब्धि बताते नहीं थकती थी। सवाल यह है कि आखिर सरकार जब सौ दिन में इस सेवा को भी नहीं सुधार पाई तो फिर उसने आखिर किया क्या ? सच तो ये है कि यह अकेले स्वास्थ्य सेवाओं की ही हालत नहीं है,हर मोर्चे पर सरकार कटघरे में है। इसके बावजूद यह कहना कि ‘सौ दिन में इतिहास रच दिया है’ तो यह जनता को मूर्ख समझने और खुद को तसल्ली देने से ज्यादा कुछ नहीं ।