अंतस् मन का विमोचन !

अंतस् मन का विमोचन!
देहरादून 17 अप्रैल   (हि.डिस्कवर)
संसद में व दिवंगत राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा सराहे गए राष्ट्रीय कवि राधाकृष्ण पंत प्रयासी की तीसरी काव्य पुस्तक मेरा अंतस् मन का विमोचन प्रसिद्ध कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने किया।
हिंदी साहित्य समिति द्वारा प्रेस क्लब देहरादून में आयोजित पुस्तक विमोचन अवसर पर पद्मश्री कवि लीलाधर जगूड़ी ने कहा कि उत्तराखंड का सौभाग्य है कि इस धरा पर कवि, कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार, वैज्ञानिक, इंजीनियर, मल्टीनेशनल कंपनियों के सीईओ, शीर्ष सैन्य अधिकारी और न जाने कैसे-कैसे हुनरमंद लोगों का जन्म हुआ है। जिन्होंने अपनी प्रतिभा से राज्य का गौरव बढ़ाया है। उत्तराखंड देवभूमि की मिट्टी में ही कुछ बात है कि यहां पर स्वाभाविक रूप से हुनरमंद लोग रहते हैं। उसे जरा सा दिशा मिलनी चाहिए कि उसका व्यक्तित्व निखरकर बाहर आने लगता है। मेरा अंतस मन पुस्तक को उन्होंने पूरा पढ़ा है हर कविता में काफी बारिकी से भावनाएं व्यक्त की गई हैं। हर कविता के पीछे कहानी है। किसी न किसी वजह से इन कविताओं की रचना हुई है। शब्दों की तारतम्यता व चयन इतना उत्कृष्ट है कि कवि की सोच, स्तर व उनकी विषय को समझने की गंभीरता खूबसूरती से सामने आती है। मुख्य वक्ता जनकवि डा.अतुल शर्मा ने कहा कि, पंत जी के कविता संग्रह मेरा अंतस् मन में दार्शनिकता, बौधिकता के बीच सरलता व विनम्रता दिखती है। कविताएं पूरी तरह से मौलिक हैं और एक नई काव्य धारा की ओर इशारा करती हैं। आवाज बुलंद मेरी होने दो.., नारी शक्ति.., आचरण से पहचाना जाए…, जीवन प्रिय बनाना होगा..,जैसी कविताएं अपने लक्ष्य को पाती कविताएं हैं।  कथाकार जितेन ठाकुर ने कहा कि राधाकृष्ण पंत जैसे कवि जब कविताएं करते हैं तो उनका समाज से स्वत: एक संवाद कायम होने लगता है। उनके शब्द समाज में कहीं न कहीं अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। अध्यक्षता करते हुए समालोचक भगवती प्रसाद नौटियाल ने कहा कि दिल्ली पुलिस में रहने के बावजूद उनके ह्दय में इतना कवित्व भाव है कि इन दोनों विरोधाभासी कार्यों का पता ही नहीं चलता। बड़ी बात ये है कि स्वयं स्व.राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम ने ये जानकर की वह उत्तराखंड के रहने वाले हैं उन्हें गंगा पर कविता लिखने का अनुरोध किया। मेरा अंतस मन कुछ हटकर लिखी गई काव्य रचना है। कवि ने दार्शनिक जीवन जिया है। इसलिए कविताओं में संवेदना, बचपन, बुरा वक्त, असहाय, आचरण, सार्थक जीवन, प्रिय फूल, नाना की अयाना, अंतिम यात्रा जैसी असंख्य कविताएं अंतस् को भेदने में कामयाब रही हैं। पुस्तक के लेखकर राधाकृष्ण पंत ने कहा कि कविताओं की पृष्ठभूमि में घर, परिवार, समाज में घटित घटनाओं, मानवीय मूल्यों के सकारात्मक-नकारात्मक पहलुओं का गुण दोष के साथ चिंतन शामिल हैं। ये उनके अंतस् मन का सच है। जहां प्यार, तकरार, राग, द्वेष, क्रोध, मोह, मर्म, आघात जैसे भाव हैं। इन्हीं धाराओं में बहते हुए वस्तुत: जीवन चलता रहता है। हिंदी साहित्य समिति की अध्यक्ष नीता कुकरेती व महासचिव वीरेन्द्र डंगवाल पार्थ ने सभी का आभार जताया। संचालन डा.सुशील उपाध्याय ने किया। मौके पर पूर्व एफआरआई निदेशक डा.जीपी मैठाणी, शिक्षाविद शिव प्रसाद पुरोहित, लेखक रमाकांत बेंजवाल, विनसर प्रकाशन के कीर्ति नवानी, राकेश सेमवाल, पुष्पा पंत, विनोद पंत, शैलेन्द्र सेमवाल, आशीष पंत व कई साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

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